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________________ . जैन धर्म का प्राचीन इतिहास ऋषमेण यशोबत्यो जातो भरतकीतितः। यस्य नाम्ना गतं ख्यातिमेतद्वास्यं जगत्त्रये ॥२०॥१४॥ सक्रति श्रियं तावत्प्राप्तो भरत भूपतिः। यस्थ क्षेत्रमिदं नाम्ना जगत्प्रगटतां गतम् ॥४॥५६ प्रर्थात भगवान ऋषभदेव की यशस्वती रानी से भरत नामक प्रथम चक्रवर्ती हया। इस पक्रवर्ती के नाम से ही यह क्षेत्र तीनों जगत में भरत क्षेत्र के नाम से प्रसिद्ध हुमा । भगवान ऋषभदेव का पुत्र राजा भरत चक्रवर्ती की लक्ष्मी को प्राप्त हुआ था और उसी के नाम से यह क्षेत्र संसार में भरत क्षेत्र के नाम से प्रसिद्ध हमा। इसी प्रकार वसुदेव हिण्डि प्रथम खण्ड पृ० १८६ में बताया है कि__'तत्थ भरहो भरहवास चूड़ामणि, तस्सेब नामेण हं भारहवासं ति पचति । भारतवर्ष के चूड़ामणि भरत हुए। उन्हीं के नाम से यह भारतवर्ष कहलाता है। भारतवर्ष का नामकरण किस प्रकार हुमा, इस सम्बन्ध में जैन और हिन्दू पुराण दोनों एकमत हैं। जिस प्रकार जैन पुराणों में स्पष्ट शब्दों में ऋषभदेव के पुत्र भरत के नाम पर भारत का नामकरण माना है, उसी प्रकार हिन्द पुराणों में भी ऋषभदेव-पुत्र भरत से ही इस देश का मायकरा गिन्या जिन्तु प्रो में इस सम्बन्धी ऐकमत्य से इस सम्बन्ध में सन्देह करने अथवा अन्यथा कल्पना करने का कोई अवकाश नहीं रहता। यहाँ हिन्दू पुराणों के कुछ उद्धरण देना हम पावश्यक समझते हैं, जिससे इस विषय पर स्पष्ट प्रकाश पड़ सके। . अग्नि पुराण हिन्दूमों का प्राचीन ग्रन्थ है। कहते हैं, इसमें सभी विषयों और विद्याओं का समावेश है। इसमें भरत और भारत के सम्बन्ध में एक स्थान पर इस प्रकार उल्लेख मिलता है 'जरामृत्युभयं नास्ति धर्माधमौ युगादिकम् । नाधर्म मध्यम तुल्या हिमाद्देशाप्त नाभितः।। ऋषभो मरव्या ऋषभाव भरतोऽभवत् । ऋषभोऽदात् श्रीपुत्र शास्यप्रामे हरि गतः। भरता भारतं वर्ष भरसात् सुमतिस्त्वभूत् । अध्याय १० श्लोक १०-१२ उस हिमवत प्रदेश में जरा और मृत्यु का भय नहीं था, धर्म और अधर्म भी नहीं थे। उनमें समभाव था। वहाँ नाभिराज से मरुदेवी में ऋषभ का जन्म हुआ। ऋषभ से भरत हुए। ऋषभ ने राज्यश्री भरत को प्रदान कर सन्यास ले लिया। भरत से इस देश का नाम भारतवर्ष पड़ा । भरत के पुत्र का नाम सुमति था। प्राग्नीध्रसूनोर्माभिस्तु ऋषभोऽभूत् सुतौ द्विजः । ऋषभाव भरतो जो बीरः पुत्रशतावरः॥ सोऽभिषिच्यर्षभः पुत्र महा प्रावास्यमास्थितः। तपत्तेपे महाभागः पुलहाश्रमसंश्रयः ।। हिमाहं दक्षिणं वर्ष भरताय पिता दो। तस्मात भारतवर्ष तस्य मामा महात्मनः॥ मार्कण्डेय पुराण प० ५०, इलोक १६४२ माग्नीध्र के पुत्र नाभि से ऋषभ उत्पन्न हुए जो अपने सौ भाइयों में अग्रज थे। ऋषभदेव ने पुत्र का राज्या भिषेक करके महाप्रवज्या धारण कर ली। इस महाभाग ने पुलह प्राश्नम में रहकर तप किया। ऋषभदेव ने भरत को हिमवत् नामक दक्षिण प्रदेश दिया था। उसी भरत महात्मा के नाम से इस देश का नाम भारतवर्ष हुमा । 'नाभिस्त्वजनयस्पुत्रं मरवेण्या महाद्युतिः। ऋषभं पार्थिवश्रेष्ठं सर्वक्षत्रस्य पूर्वजम् ।।५।।
SR No.090192
Book TitleJain Dharma ka Prachin Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherGajendra Publication Delhi
Publication Year
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Story
File Size15 MB
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