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________________ श्री गरुड़ पंचमी व्रत कथा [१०५ ******************************** बीमार होने की खबर दी। गृह सुनकर गरित्रमानिने श्रीगुरुसे पूछा-हे नाथ! मेरे पिताको कोनसी व्याधि हुई है? तब श्री गुरुने कहा-पुत्री! तेरे पिताके खेतमें एक बडका झाड था, उसके नीचे एक सांपकी यांबी थी, उन बांदीमें एक पार्श्वनाथ और दूसरी नेमिनाथस्वामीकी प्रतिमा थी जिनकी पूजा हमेशा भवनयासी देय करते थे, सो तेरे पिताने उस झाड कटवाकर बाबीको नष्ट कराया है। इनसे उन भयनयासी दंवोंने क्रोधित होकर विषैली दृष्टिसे तेरे पिताको देखा हैं। और इससे वह मूर्छित हो गया हैं। तब चारित्रमतीने पूछा-हे नाथ! अब यया यत्न करना चाहिये जिससे पिताजीको आराम मिले। तब श्रीगुरुने कहा-पुत्री श्रद्धापूर्वक गरुडपंचमी व्रत पालन कर इससे तेरे पिताकी मूर्छा दूर होकर वह स्वस्थ हो जावेगा। इस व्रतकी विधि इस प्रकार है कि श्रावण सुदी पंचमीको उपवास करना, तीनों कालमें सामायिक करना, मंदिरमें जाकर श्री जिनेन्द्रका अभिषेक पूजन करना फिर होम (हयन) करना, देवल (मंदिर) में गांधी बनाना, उसमें दूध, घी, मिश्री धाणी कमलगट्टा सथा फूल आदि डालना, अर्हन्त प्रभुके ५ आएक चढाना| माला 'ॐ अर्हद्भ्यो नमः' इस मंत्रको जपना, मंगल गान भजन जागरण करना आरती करना य आशीर्वाद बोलना। इस प्रकार पांच वर्ष तक यह व्रत पालना, पश्चात् उद्यापन करना। यदि उद्यापनकी शक्ति न होये तो द्विगुणित (दूना) व्रत करना। उद्यापनकी विधि इस प्रकार है कि आरती, थाली, कलश, धूपदान, चमर, चन्दोया. अछार, शास्त्र आदि उपकरण
SR No.090191
Book TitleJainvrat Katha Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeepchand Varni
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages157
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size2 MB
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