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परिवार में परस्पर प्रीति, सद्भाव, सम्मान, लक्ष्मी, धन-धान्य, मणि-सुवर्ण आदि की अभिवृद्धि हुई हैं। प्रजा में आरोग्य, सुख-शान्ति, सौहार्द बढ़ा है। अतः देवी त्रिशला एवं मैंने यह विचार किया है कि इस बालक का गुण सम्पन्न नाम 'वर्द्धमान' रखा
भगवान महावीर के विविध नामकरण इन्द्र के द्वारा होने की चर्चा है। कहते
"सिद्धाधं तुम्हारा सुत सन्मति, सत्यों का सतत प्रकाश यहाँ। यह वर्द्धमान यह ज्ञानवान, यह अद्भुत ईश्वर का स्वरूप॥"
(वीरायन, पृ. 100) इस प्रकार आलोच्य महाकाव्यों के कवियों ने वर्द्धमान नाम के अर्थ का विश्लेषण करते हुए महावीर के चरित्र का बहिरंग चित्रण किया है।
सन्मति-वर्द्धमान का दूसरा नाम 'सन्मति' प्रचलित रहा। क्योंकि इनके दर्शन मात्र से ही दर्शकों की मिथ्या बुद्धि सम्यकुबुद्धि में परिवर्तित हो जाती है। अतः विजय और संजय चारण मुनियों ने वर्द्धमान की प्रशंसा करते हुए कहा है
"युग मुनिवर ने इनको पाया, सु-विचक्षण बालक मेधावी । भट सोचा 'सन्मति' नाम सुभग,
मति भेद सकी गति भायावी" (तीर्थकर भगवान महावीर, पृ. 75) इत्त तरह विशेष लक्षण को देखकर वर्द्धमान का नाम सन्मति रखा गया।
कुमार बर्द्धमान बचपन से तीन ज्ञान (मति, श्रुत, अवधि) के धारी थे, अतः उन्हें शिक्षा ग्रहण करने की विशेष आवश्यकता नहीं थी। "पुराणों में कुमार वर्द्धमान के मेधावी एवं सम्पति होने की चर्चा मिलती हैं। उन्होंने संजय और विजय दो मुनियों की शंकाओं का निरसन किया। वर्द्धमान के रूप में तीर्थकर के जीव के आने की बात जानकर दो मुनि कुछ शंका लेकर आये। परन्तु बालक बर्द्धमान को दूर से देखते हुए उनकी शंका का निरसन हो गया 1 वे अत्यन्त सन्तुष्ट हुए और वर्द्धमान का नाम तभी से सन्पत्ति विख्यात हुआ। इस तरह सन्मति' नाम की सार्थकता को स्पष्ट करते हुए महाकवियों ने भगवान महावीर के चरित्र को विशेषता को स्पष्ट किया है।"
वीर-कुण्डलपुर में एक बड़ा हाथी मदोन्मत्त होकर माग में आनेवाले स्त्री-पुरुषों की कुचलता हुआ इधर-उधर घूमने लगा। जनता भयभीत हो उठी। वर्द्धमान ने हाथी
1. सं. श्री. अमरमनि : सचित्र तीर्थकर-चारेत्र, 9. II
298 :: हिन्दी के महाकाव्यों में चित्रित भगवान महावीर