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यह धारणा थी कि चरित्रनायक श्रेष्ठ कुल में ही उत्पन्न हो। अतः महाकाव्य के तक्षणों में यह अनिवार्य था कि नायक श्रेष्ठ कल में (क्षत्रिय, राजवंश में) उत्पन्न हो। आज भी कुछ लोगों की ऐसी धारप्या है कि श्रेष्ठ कुल के कारण यंशपरम्परा से नायक में श्रेष्ठ गुण आ जाते हैं। भगवान महावीर का जन्म राजवंश में क्षत्रिय कुल में हुआ है। पिता सिद्धार्थ जिस के अधिनायक थे वह ज्ञातृकुल भगवान ऋषभदेव का इक्ष्वाकुवंशीय कुल था। भगवान ऋषभदेव का गोत्र भी काश्यप था। सिद्धार्ध का गोत्र भी काश्यप था। उल्लेखनीय बात यह है कि 22 तीर्थकर इक्ष्वाकुवंशीय काश्यप गोत्रीय
ईसापूर्व छठी शताब्दी में उत्तर भारत के पूर्वी भाग में लिच्छवि जाति के नाथकुल में इक्ष्वाकुवंशीय, काश्यपगोत्रीय राजा सिद्धार्थ, वज्जी गणतन्त्र के प्रजावत्सल, धर्मनिष्ठ,
आत्मजाग्रत, सदाचारी, सम्यग्ज्ञानी, महापराक्रमी, आदर्श, लोकप्रिय शासक थे। उनका विवाह वैशाली के ही धर्मवीर चेटक की कन्या प्रियकारिणी त्रिशला के साथ हुआ था। वह अत्यन्त रूपवती, गुणवती, धर्मपरायणा विदुषी घी। यही त्रिशला और राजा सिद्धार्घ तीर्थंकर भगवान महावीर के माता-पिता थे। महाकवि 'अनूप' 'वर्द्धमान' महाकाव्य में भगवान महावीर के वंश के सम्बन्ध में कहते हैं...
"यही यशस्वी हरि-वंश-व्योम के,
दिनेश सिद्धाधं प्रदीप्तमान थे।” (वर्द्धमान, पृ. 42) 'वीरायन' महाकाव्य में कवि भगवान महावीर के कुल के सन्दर्भ में लिखता
"ज्ञातृकुल में वीर वर, वैशालिय अवतीर्ण । अणु-अणु कण-कण में हुई, सुरभित ज्योति विकीर्ण।"
(वीरायन, पृ. 96) वर्द्धपान की माता त्रिशला देवी के राज-वैभव का चित्रण करते हुए कहा गया
"हे कुण्डग्राम में छटा प्रबीलो छायो राजोद्यान में रूप-राशि मुस्कायी॥"
(तीर्थंकर भगवान महावीर, पृ. 22) भगवान के पिता सिद्धार्थ वैशाली जनतन्त्र के अधिपति थे। राज-दरबार में रानी त्रिशला का आगमन होते ही वे उसका यथोचित स्वागत कर सन्मान भी करते हैं। कवि लिखते हैं
“राजा ने भी कर दिया रिक्त सासन।
सब बैठे अव हो रही सभा आते शोभना" (वही, पृ. 20 सभी प्राचीन भारत के इतिहासकारों ने लिच्छवि गणतन्त्र भारत का प्राचीनतम
भगवान महावीर का चरित्र चित्रण :: 5