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________________ यह लोक ही है? जब उन्होंने किशोर वर्द्धमान के मुखमण्डल को देखा, उसी समय उनकी शंका दूर हुई। कवि इस प्रसंग का वर्णन निम्न पंक्तियों में करता है “युग मुनिवर ने इनको पाया, तु-विचक्षण बालक मेधावी 1 झट सोचा 'सन्मति' नाम सुभग, गति भेद सकी गति मायावी || " (वही, पृ. 75) तभी से उनका दूसरा नाम 'सन्मति' जगविख्यात रहा। बालक वर्द्धमान अपने मित्रों के साथ मुनियों की बन्दना करता है और उनसे आशीर्वाद प्राप्त करता हैं । घर लौटने पर यह घटना माता - पिता गुरु-जनों को जब मालूम होती है तब उन्हें बहुत ही आश्चर्यजनक आनन्द होता है। किशोर वर्द्धमान के शिक्षक ने भी अपना यह मत जाहिर किया कि जो भी कुछ मैं उन्हें नयी बात सिखाता हूँ उसे पहले ही वह बात ज्ञात रहती है। वे स्वयं 'प्रज्ञावान' हैं। गुरु को लगता है बालक को क्या सिखलाया जाए, उनसे तो हमें ज्ञान प्राप्त होता है । बालक वर्द्धमान सतत अध्ययनशील रहता है। इस किशोर अवस्था में भी वह सदा सत्य बोलता हैं, अस्तेय व्रत का पालन करता है, ब्रह्मचर्य से रहता है और परिग्रह परिमाण भी रखता है। इस सदाचरण के परिणामस्वरूप उसमें साहस, बल और शौर्य दिन-ब-दिन बढ़ते जाते हैं। कवि इस प्रसंग में कहते हैं "उनके साधारण कृत्यों में, है वीर-वृत्ति दिखती सदैव । पुरुषार्थ हेतु उद्यमी सदा, उनका आदर्श न रहा देव ||" (वही, पृ. 77 ) अतः बालक सन्मति की इस वीर प्रवृत्ति को देखते हुए संसार में उनका 'वीर' नाम प्रचलित हुआ। देवलोक में भी बालक सन्मति की वीरता की प्रशंसा होने लगी, लेकिन 'संगम' नामक देव को इस पर विश्वास नहीं हुआ और उसने सन्मति की वीरता की परीक्षा लेने के लिए काले भुजंग का रूप धारण किया और जहाँ बालक बर्द्धमान साथियों के साथ खेलता था, वहाँ वह फुंकारने लगा। सभी साथी डर के मारे भाग गये, लेकिन चालक वर्द्धमान निडर होकर उस विषैले सर्प के फण पर खड़ा रहकर खेलता रहा। उधर बाल सखाओं ने राजमहन में जाकर माता-पिता को सर्प की घटना का वृत्तान्त कहा। सभी उस खेल के स्थल पर आये, तब उस विषैले भुजंग ने अपना असली रूप संगमदेव के रूप में प्रकट किया और बालक 'सन्मति' को अपने कन्धों पर बिठाकर उसकी प्रशंसा की। सबके सामने संगमदेव ने उसे 'महावीर' नाम से सम्बोधित किया। "यह सन्माते केवल वीर नहीं, ये तो सच अतिशय धीर वीर । 'हूँ नाम रख रहा 'महावीर, यह यथा नाम है तथा गुण | " (वही, पृ. 84 ) पंचम सर्ग - तरुणाई एवं विराग युवा महावीर में यौवनसुलभ भावनाओं का संचरण हो रहा था। मन की चंचलता भी हो रही थी। लेकिन महावीर सूक्ष्म द्रष्टा होने के कारण इन काम-वासनाओं 58 हिन्दी के महाकाव्यों में चित्रित भगवान महावीर
SR No.090189
Book TitleHindi ke Mahakavyo me chitrit Bhagavana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushma Gunvant Rote
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages154
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size3 MB
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