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मायावी वालक को सोयो हुई त्रिशला के पास रखकर शिशु महावीर को इन्द्र सुमेरु पर्वत पर ले जाकर जलाभिषेक करते हैं। उस समय बालक का रूप-सौन्दर्य अप्रतिम था। जन्मोत्सव मनाने के बाद इन्द्र, शची बालक को कुण्डग्राम ले जाते हैं और पायावी बालक को हटाकर उसकी जगह शिशु महावीर को रखते हैं। समस्त देवगण स्वर्गलोक लौट जाते हैं। वैशाली नगर में दस दिन तक जन्मोत्सव बड़ी घूम-धाम से मनाया जाता है।
तृतीय सर्ग-शिशुवय
शिशु वर्द्धमान दिनोंदिन बढ़ता जाता है। वे अभी बोल नहीं पाते, लेकिन हर चीज के प्रति जिज्ञासा बनी रहती है। राजनगर में रास्तों पर घूमने में बालक को बड़ा हर्ष होता था। माता त्रिशला को अपने बेटे का उनसे दूर रहना बहुत दुखदायक लगता था। वह महल में सदैव उसकी प्रतीक्षा में रहा करती है।
बालक में कुशलतम शासक बनने की क्षमता पिता को नजर आती है। बाल सुलभ चेप्टा देखकर वह मन मोहित होता था। छोटी अवस्था में बालक स्वयं खिलौने तैयार करता था, गुलदस्ते बनाता था, झण्डियाँ बनाता था। राजा-रानी ये सब देखकर फूले नहीं समाते थे।
माँ उसे कहानियाँ सुनाती रहती। शिशु वर्द्धमान को सन्तों की कहानियाँ सुनना अच्छा लगता था। कवि इस तथ्य की ओर संकेत करता हुआ कहता है
“मुझको तो भली लगी थी, उस दिन की क्षमा कहानी।
जिससे कि पार्श्व स्वामी के, जीवन की झाँकी जानी।" (वही, पृ. 68) अतः माँ उसे ऋषभदेव के जीवन की कहानी सुनाती है। शिशु अत्यन्त पगन कर सुनता था।
चतुर्थ सर्ग-किशोरवय
किशोर अवस्था में बच्चों में जो स्वच्छन्दता रहती है, जो हास-उल्लास चलता रहता है और जो निर्द्वन्द्वता रहती है, उनका अत्यन्त सुन्दर चित्रण सर्ग के प्रारम्भ में कवि ने किया है। किशोर वर्द्धमान अपने समवयस्क मित्रों के साथ नगर के बाहर खेलने गये थे। कवि इस प्रसंग का वर्णन करता है"इन बच्चों की टोली के हैं, अधिनायक बालक वर्द्धमान।"
(वही, पृ. 74) बालक वर्द्धमान सखाओं के साथ जब खेल रहा था, उस समय विजय और संजय दो चारण ऋद्धि मुनि वहाँ से गुजर रहे थे। उनके मन में एक शंका सताती थी कि जीव मरण के बाद कहाँ जाता है : स्वर्ग और नरक ये हैं या नहीं : या केवल सिर्फ
आधुनिक हिन्दी महाकाव्यों में वर्णित महावीर-चरित्र :: 57