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से ई. पू. 599 में महावीर ने जन्म लिया। उनके विशेष गुणस्वभाव के अनुसार के वर्द्धमान, सन्मति, वीर, अतिवीर, महावीर आदि नामों से विख्यात हुए । माता त्रिशन्ला लिच्छवि गणतन्त्र के महाराजा चेटक के परिवार की थीं।
महावीर के विवाह के सम्बन्ध में कोई सर्वसम्मत मत नहीं है। पिता के राज्य का शासनकार्य भी उन्होंने युवावस्था में नहीं चलाया । 30 वर्ष के नवयौवन में महावीर ने समस्त राजऐश्वर्य का त्याग कर संन्यास धारण किया। सच्चे आत्मिक सुख की, आत्मशुद्धि की प्राप्ति के लिए निर्ग्रन्थ होकर कठोर तपश्चर्या की। आत्म-विकास की साधना करते समय अनेक बाह्य उपद्रवों एवं परीषहों पर विजय प्राप्त की। बारह वर्ष की कठिन तपश्चयां के पश्चात् उन्हें केवलज्ञान प्राप्त हुआ। वे केवली अर्हत् सर्वज्ञ कहलाये।
राजगृह के निकट विपुलाचल पर महावीर की प्रथम देशना (उपदेश) हुई। तीस वर्ष तक देश के विभिन्न स्थानों में उन्होंने विहार करके धर्म-प्रचार किया । इस विहार के कारण ही मगध राज्य का नाम बिहार पड़ गया। "महावीर के माता-पिता पार्श्वनाथ परम्परा के अनुयायी थे। महावीर ने पूर्ववर्ती 23 तीर्थंकरों द्वारा प्रतिपादित विचारधाराओं से प्रेरणा लेकर दृढ़ श्रद्धा ते ज्ञान-चारित्र की साधना करके अर्हत् केवली का पद प्राप्त किया था। उस ज्ञान के द्वारा युगीन समस्याओं की व्याख्या करके उनके समाधान भी समन्वयवादी, मानवतावादी दृष्टिकोण से प्रस्तुत किये ।।
महावीर ने अपने उपदेशों में समस्त प्राणी मात्र की आत्मा को शुद्धता, आचरण की पवित्रता एवं आत्मा की महानता के विकास की महत्ता पर सबसे अधिक बल दिया। आत्मा ही परमात्मा के रूप में पूर्णता को आत्मिक पुरुषार्थ से प्राप्त कर सकती है। महावीर के उपदेश सभी मानवों के लिए थे। वे समतावादी एवं सर्वोदयवादी थे। अतः संघ व्यवस्था में समस्त मानवमात्र को प्रवेश था। चतुःसंघ की व्यवस्था का विधान रहा। श्रावक-श्राविकाएँ (गृहस्थधर्म), साधु-साध्वियाँ (श्रमणधर्म) इस चतुःसंघ की व्यवस्था तथा जीवन-पद्धति आज तक प्रचलित रही है।
महावीर ने तीर्थ (नदी के घाट की तरह सबके लिए उपयोगी धर्म) का प्रवर्तन किया, जिसमें दलित, शोषित, अन्यायपीड़ित, मानव इसी जन्म में सुख-शान्ति और परलोक में भी सच्चा शाश्वत सुख प्राप्त कर सकें। 527 ई. पू. पावापुर में 72 वर्ष की आयु में महावीर ने निवांण प्राप्त किया।
डॉ. वासुदेवशरण अग्रवाल महावीर की प्रामाणिक जीवनी की ऐतिहासिकता को स्पष्ट करते हुए लिखते हैं
वर्द्धमान महावीर गौतम बुद्ध की भाँति नितान्त ऐतिहासिक व्यक्ति हैं। माता-पिता के द्वारा उन्हें भी हाड़-मांस का शरीर प्राप्त हुआ था। अन्य मानवों की भाँति वे भी
1. डा. हीरालाल जैन, आ. ने. उपाध्ये : महावीर : युग और जीवन दर्शन, पृ. 48
भगसन महावीर की जीवनी के स्रोत :: 39