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________________ त्रिषष्टिस्मृतिशास्त्रम्-पण्डित आशाधर विरचित इस संस्कृत ग्रन्थ का प्रारम्भ वीर बन्दना से हैं। अन्य 24 तीर्थकरों के विशद वर्णन के साथ ग्रन्थ के अन्त में महायीर की कथा दी गयी है। बावन शलोकों में कवि ने कुशलता के साथ वीर के जन्म, दीक्षा, तप आदि का वर्णन किया है। महावीर के माता-पिता, जन्मस्थान विषयक वर्णन जहाँ अति सुन्दर हैं, वहीं उनका नाम समृद्धि का सूचक ‘वर्द्धमान' रखा गया था। 'वीर' से 'महावीर' बनकर उन्होंने पौरुष की पराकाष्ठा पार कर दो और बौद्धिकता में भी ये अग्रगण्य रहे। वीर-बर्द्धमान-चरित्र-भट्टारक श्री सकलकीर्ति ने संस्कृत भाषा में वीर-वर्द्धमान चरित्र' की रचना की है। वे विक्रम की 15वीं शताब्दी के आचार्य हैं। उनका समय वि. सं. 1443 से 1199 तक रहा है। इस चरित्र में कुल 19 अध्याय हैं। प्रथम अध्याय में सर्व तीर्थंकरों को पृथक-पृथक् श्लोकों में नमस्कार किया है। भट्टारक सकलीति के 'वीर वर्द्धमान' चरित काव्य का अनुकरण आधुनिक हिन्दी के महाकाव्यों में अधिकतर हुआ है। वर्द्धमान चरितम्-नामक प्रसिद्ध महाकाव्य, 'महाकवि असग' द्वारा दशम शती के उत्तरार्ध में रचा गया। इस विशाल महाकाव्य में भगवान महावीर का अनेक पूर्व जन्मों से युक्त लोकोत्तर जीवनवृत्त अठारह सर्गों में दिव्य-भव्यता के साथ वर्णित है। सोलह सर्गों में अत्यन्त उदात्त शैली में और अनेक वर्णन वैभवों की आभा में बर्द्धमान के पूर्व जन्मों का वर्णन है। उत्थान-पतन के अनन्त धपेड़ों से जूझता हुआ बर्द्धमान का चिरसंघर्षशील जीव हमारे मानस-पटल पर एक प्रभावक और स्थायी बिम्ब बना लेता है। सत्रहवौं सर्ग महाकाव्य का सर्वस्व है। बर्द्धमान के जन्म से लेकर केवलज्ञान प्राप्ति तक का प्रायः समस्त जीवन इस सर्ग में चित्रित है। अठारहवें सर्ग में वर्द्धमान के विभिन्न उपदेशों का वर्णन है और अन्ततः बहत्तर वर्ष की आयु में निर्वाण प्राप्ति का वर्णन है। जहाँ तक वर्द्धमान चरित्र के कथानक स्रोतों का प्रश्न है, महाकवि असग ने 'तिलोयपण्णत्ति' और 'उत्तरपुराण' से सहायता ली है। पुराण को महाकाव्य का रूप देने में कवि ने अनेक स्थलों को छोड़ा है और अनेक हृदयस्पर्शी स्थलों की योजना की है। आधुनिक हिन्दी के महावीर चरित महाकाव्यों में इसी से मिलती-जुलती जीवनी चित्रित की गयी है। महावीर विषयक अन्य चरितकाव्य केशव का 'वर्द्धमानपुराण', गुणभद्र का वर्द्धमानपुराण' आदि उनके नाम के अनुसार महावीर चरित के महाकाव्य हैं। डॉ. नेमिचन्द्र शास्त्री का कथन है-"जिनसेनाचार्य की केवल तीन ही रचनाएं उपलब्ध हैं। 'बर्द्धमानचरित' की सूचना अवश्य प्राप्त होती 34 :: हिन्दी के महाकाव्यों में चिन्त्रित भगवान पहावीर
SR No.090189
Book TitleHindi ke Mahakavyo me chitrit Bhagavana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushma Gunvant Rote
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages154
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size3 MB
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