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व्यवस्था में आमूल परिवर्तन हो । साम्यवादी, जनतान्त्रिक, सर्वधर्मसमभावी, शोषणरहित, तह-अस्तिच पर आधारित आहेसात्मक नयो समाज-व्यवस्था की स्थापना भगवान पहावीर के आदर्शों को अपनाने से ही हो सकती है। यह दृढ़ विश्वास महात्मा गाँधी ने अपने चरित्र द्वारा भारतवासियों को दिलाया था। कवि का स्वर इस प्रकार है
"दुर्गा दन शक्ति अहिंसा ने, योद्धाओं में भर दिया रम्त । यह शक्ति अहिंसा है जिसने, वीरों के हाथों लिया तख्त ॥"
(वही, पृ. 350 अहिंसा धर्म का पातन, वीर आत्मशक्ति सम्पन्न, दृढ़ चरित्रवाले ही कर सकते हैं। इस शस्त्र को चलाने की क्षमता कायरों में कदापि नहीं आ सकती। अहिंसा के पुजारी ही यह क्षमता रखते हैं। भगवान महावीर का जोवन सार्वजनीन लोकोपकारी है।
चरित्र की प्रासंगिकता विषयक अभिमत
आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी महावीर के चरित्र की प्रासंगिकता के सन्दर्भ में विवेचन करते हुए लिखते हैं
"इस देश के विसंगतिबहुल समाज को ठीक रास्ते पर ले आने के लिए, जिन महात्माओं ने गहराई में देखने का प्रयास किया, उन्होंने वाणी द्वारा कुछ भी कहने के पहले अपना चरित्र शुद्ध रखा है।...इस देश के नेतृत्व का अधिकारी एकमात्र वहीं हो सकता है, जिसमें चरित्र का महान् गुण हो।...भगवान महावीर इस देश के उन गिने-चुने महात्माओं में से हैं जिन्होंने सारे देश की मनीषा को नया मोड़ दिया है। उनका चरित्र, शील, तप और विवेकपूर्ण विचार सभी अभिनन्दनीय हैं।
अतः भगवान महावीर के चरित्र एवं चिन्तन की आधुनिक सन्दर्भ में प्रासंगिकता है।
डॉ. एस. राधाकृष्णन लिखते हैं, "वैयक्तिक स्वातन्त्र्य और सामाजिक न्याय दोनों मानव-कल्याण के लिए परमावश्यक है। हम एक के महत्त्व को बढ़ा-चढ़ाकर कहें या दूसरे को घटाकर कहें, यह सम्भव है। किन्तु जो आदमी अनेकान्तवाद, सप्तभंगीनय या स्यावाद के जैन विचार को मानता है, वह इस प्रकार के सांस्कृतिक कठमुल्लापन (संकीर्णता) को नहीं मानता। वह अपने और विरोधो के मतों में क्या सही है और क्या ग़लत है, इसका विवेक करने और उनमें उच्चतर समन्वय साधने के लिए सदा तत्पर रहता है। यही दृष्टि हमें अपनानी चाहिए।"
1. सं. डॉ. नरेन्द्र मानावत : भगवान महावीर आधुनिक सन्दर्भ में, पृ. 26, 28 | 2. वही, पृ. 151
भगवान महावीर के चरित्र की प्रासंगिकता :: 145