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________________ चतुर्थ अध्याय भगवान महावीर के चरित्र की प्रासंगिकता आधुनिक हिन्दी महाकाव्यों में वर्णित भगवान महावीर के चरित्र के बहिरंग एवं अन्तरंग चित्रण का अनुशीलन करने पर हमें उनके चरित्र की जो उपलब्धियाँ प्राप्त होती हैं उनके आलोक में भगवान महावीर के चरित्र की प्रासंगिकता एवं उनके ऐतिहासिक योगदान को निम्नरूप में रेखांकित किया जाता है। प्रासंगिकता के विवेचन में यह प्रतिपादित करने का प्रयास रहा है कि भगवान महावीर के चरित्रादर्श आधुनिक सन्दर्भ में पानवमात्र के लिए किस प्रकार पथ-प्रदर्शक रहे हैं। भगवान महावीर के जीवन के प्रथम तीस साल राजमहल में बीत जाने पर भी वे ब्रह्मचर्यपूर्वक सदाचार का जीवन व्यतीत करते हुए एक जन्मजात योगी के रूप में, आत्मस्वरूप के चिन्तन में मग्न रहे । समस्त राजवैभन को त्यागकर दिगम्बर मुनि बने । बारह वर्षीय साधनाकाल उनके अपने जीवन के लिए वीतराग, अरिहन्त केवली पद की उपलब्धि का आधार बना। तीर्थंकर भगवान बनने के बाद का तीस वर्ष का समय विश्वकल्याण के लिए समर्पित रहा। इन तीस वर्षों में भगवान महावीर ने अनेक स्थलों पर विहार करके समस्त लोक में अपनी दिव्यध्वनि से नवजागरण किया। अपने विचारों से भगवान महावीर ने युगों से चली आती अनेक रूढ़ धारणाओं को तोड़ा और मानवता के लिए अभिशाप रूप अनेक परम्पराओं में परिवर्तन भी किया। उनके चरित्र में व्याप्त लोककल्याणकारी महानतम उपलब्धियों को मुख्य रूप से हम इस रूप में देख सकते हैं(1) धर्म एवं परलोक कल्याण के नाम पर होनेवाले अनुष्ठानों में पशुहिंसा, मानवबलि तथा अज्ञानमूलक क्रियाकाण्डों का, बाह्याडम्बरों का विरोध करकं अहिंसा धर्म की ओर जनसाधारण को अभिमुख किया। (2) स्त्री, शुद्र आदि शास्त्र पढ़ने और धर्म आचरण करने के अधिकारों से वंचित घे, उन्हें जिनधर्म में दीक्षा दी। सबको समान अधिकार एवं समान-स्तर प्रदान किया। वर्गवादी, वर्णवादी, आश्रमवादी, जातिवादी, सामन्तवादी विचारों के मूल्यों का निर्मूलन करके समतावादी, मानवतावादी, 142 :: हिन्दी के महाकाव्यों में निंत्रित भगवान पहाबोर
SR No.090189
Book TitleHindi ke Mahakavyo me chitrit Bhagavana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushma Gunvant Rote
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages154
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size3 MB
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