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नम्रता, सरलता, पवित्रता, सत्य, संयम, तप, त्याग, अकिंचन तथा ब्रह्मचर्य स्वरूप है। यांग, ध्यान, तपरया आदि द्वारा इन गुणों का आविष्कार भगवान महावीर की चरित्रगत विशेषताओं में दिखाई देता है।
आलोच्य महाकाव्यों के चरित्र नायक भगवान महावीर हैं। महावीर ऐतिहासिक पात्र हैं। फिर भी युग-युग में उनकं चरित्र के स्वरूप में अलौकिकता, दिव्यता, आतशयता के परिणामस्वरूप साम्प्रदायिकता के, पौराणिकता के रंग कवियों की प्रबल कल्पनाओं द्वारा चढ़ाये गये। प्राकृत, संस्कृत, अपभ्रंश, पुरानी हिन्दी से होकर आधुनिक आर्य एवं द्रविड़ भाषाओं के साहित्य में आज तक अविरत रूप में भगवान महावीर पर चरितकाव्य प्रकाशित होते रहे हैं। आधुनिक युग के सन्दर्भ में आधुनिक हिन्दी के कवियों ने अपने महाकाव्यों में भगवान महावीर के चरित्र को समग्रता से महाकाव्यात्मक शैली में प्रस्तुत किया, लेकिन भगवान महावीर के चरित्र को संस्कृत, अपभ्रंश की परम्परा में प्राप्त चरित्र की पद्धति पर ही आधुनिक हिन्दी में उन्हें अवतरित किया। भगवान महावीर की शिक्षाओं का, उपदेशों का विवेचन आधुनिक युग के सन्दर्भ में कवियों ने किया है। इन कवियों का प्रमुख लक्ष्य भगवान महावीर की जीवनी को प्रस्तुत करने की अपेक्षा, उनके विचारों की प्रासंगिकता को प्रतिपादित करना रहा है। फिर भी चरित्र को पौराणिक शैली में प्रस्तुत करते समय वह चरित्र आकर्षक, रोचक एवं सर्वजनग्राह्य हो जाए, इसीलिए आधुनिक युग की मान्यताओं के अनुसार मनोवैज्ञानिक, विवरणात्मक, विश्लेषणात्मक, आत्मकथात्मक, एकालाप, अनुस्मरण, अनुचिन्तनात्मक, अन्तःप्रेरणाओं के एवं जीवन-दर्शन के चित्रण द्वारा भगवान महावीर के चरित्र को महाकाव्यात्मक कलाकृति में प्रस्तुत किया है।
भगवान महावीर का चरित्र जन्मजात योगी के रूप में होने के कारण योगी से महायोगी, महायोगी से परमयोगी तक की उनकी आध्यात्मिक साधना का बुद्धिग्राह्य वैज्ञानिक विवेचन प्रस्तुत करने में आधुनिक कवियों को सफलता मिली है। शान्तरस प्रधान रस होने के कारण आलोच्य महाकाव्यों में वर्णित भगवान महावीर के चरित्र के अनुशीलन से सात्त्विक भाव जाग्रत होकर अलौकिक आनन्द की, शान्तरस की रसानुभूति हमें प्राप्त होती है। इसी दृष्टि से चरित्र-चित्रण में सौन्दर्य की अनुभूति अभिव्यजित होती है।
भगवान पड़ाबोर का चरित्र-चित्रण :: 141