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(1) हाथी : स्वप्नशास्त्र में ऐरावत हाथी महत्ता का प्रतीक है। वह लौकिक गजों से भिन्न अलौकिक तथा मनोज्ञ होता है। महाराजा सिद्धार्थ ने कहा-ऐरावत हाथो के दर्शन का फल है कि तेरा बालक तीर्थनायक, पतितपावन, विश्व-उद्धारक, अनेकान्त-स्थापक, परम जहिंसा धर्म का उपासक, करुणा-सागर, संवेग एवं ज्ञान वैराग्य से सम्पन्न होगा।
(2) श्वेत वृषम : माता त्रिशला ने दूसरे स्वप्न में नेत्रों को प्यारा, अपने खुरों से पृथ्वी को खोदता हुआ तथा मेघ के समान गर्जना करता हुआ बैल देखा। श्वेत वृषभ का देखना धीर पवित्र आचरणसम्पन्न बीलरागी, सहिष्णुता का प्रतीक है। आलोच्य महाकाव्यों में इस स्वप्न का चित्रण निम्न पंक्तियों में किया गया हैं"होगा तव सुत वह धर्म सुरथ का चालक ।”
(तीर्थंकर भगवान महावीर, पृ. 27) "वह सुत की धर्म धुरन्धरता की ही सामर्थ्य दिखाता है।
(परमज्योति महावीर, पृ. 181) तात्पर्य श्वेत वृषभ का स्वप्नदर्शन यह सूचित करता है कि बालक वीतरागी होगा।
(3) धवल सिंह क्रीडास्त : स्वप्न में सिंह क्रीडा करते देखना, बल प्रताप पौरुष का प्रतीक है। बालक शत्रुता नाशक, अतुल पराक्रमी, आत्पद्रष्टा, स्वतन्त्रता और स्वावलम्बन से परमात्म पद प्राप्ति करनेवाला होगा।
(4) सिंहासन पर स्थित लक्ष्मी को गजस्नान कराते हुए : चौथे स्वप्न में कमल पर विराजमान तथा हाथ में सुन्दर सरोज धारण किये हुए लक्ष्मी देखी, जिसका शुभ हाधियों द्वारा सुगन्धित जल से परिपूर्ण कलशों से अभिषेक हो रहा था। सिंहासन स्थित लक्ष्मी का गजों द्वारा स्नान 'शतेन्द्र' पूज्यता का प्रतीक है। जन्म के समय सौधर्म इन्द्र अपने परिवार सहित शिशु का सुमेरु पर जन्माभिषेक सम्पन्न करेगा। बालक बड़ा होकर बाह्य-आभ्यन्तर लक्ष्मी का स्वामी एवं वस्तु-स्वरूप प्रतिपादक होगा। लक्ष्मी स्नान का दर्शन बालक की पूज्यता का द्योतक है।
(5) मन्दार पुष्पों की दो मालाएँ : माता त्रिशला को पाँचवें स्वप्न में भ्रमरों से शोभायमान तथा अतिशय लम्बायमान, सुवास सम्पन्न दो मालाएँ दिखाई पड़ी। मन्दार पुष्यों की मालाएँ यश एवं अतीन्द्रिय आत्मसुख की सूचक हैं। गर्भस्थ शिशु का शरीर सुगन्धित, कान्तिमान और अनेक शुभ-लक्षणों से संयुक्त होगा। हृदय कोमल एवं वासनामुक्त होगा। स्वप्न के इस अन्वयार्थ को सुनकर 'त्रिशला रानी फूली नहीं समायी। तात्पर्य यह है कि मन्दार पुष्म की माला अतीन्द्रिय आत्मसुख की घोतक है। समस्त आधुनिक कवियों ने स्वप्नों का वर्णन अपने महाकाव्यों में किया है।
(6) नक्षत्रों से परिवेष्टित पूर्णचन्द्रमा : छठे स्वप्न में अन्धकार को नष्ट
122 :: हिन्दी के महाकाव्यों में चित्रित भगवान महावीर