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________________ गयी। उसने जीवों को मारना और मांस का खाना छोड़ दिया और वह निराहार रहकर विचरने लगा। अन्त में संन्यासपूर्वक प्राण छोड़कर प्रथम स्वर्ग का देव हुआ । यह भगवान महावीर का गणनीय चौबीसवाँ जन्म था। तेईसवें सिंह भय तक उनका उत्तरोत्तर पतन होता गया । और मुनि समागम के पश्चात् चरित्रनायक के जीव का आत्मोत्थान प्रारम्भ हुआ । कवि के शब्दों में "आसन पर बैठ अहिंसा के तप व्रत मृगेन्द्र ने बहुत किये। तन सूख गया तज दिये प्राण, पर आमिष खाकर नहीं जिये || तप के प्रसाद व्रत के फल से, मृगराज जीव सुरराज हुए। सौधर्म स्वर्ग में सिंहकेतु' धरती माता के ताज हुए।" (वीरायन, पृ. 149 ) सौधर्म स्वर्ग से चयकर चरित्रनायक का जीव पच्चीसवें सत्र में 'कनकोज्ज्वल' नामक राजा हुआ। किसी समय वह सुमेरु पर्वत की वन्दना को गया । वहाँ पर उसने एक मुनिराज से धर्म का उपदेश सुना और संसार से विरक्त होकर मुनि बन गया । अन्त में समाधिपूर्वक प्राण त्याग करके छब्बीसवें भाव में लान्तव स्वर्ग का देव हुआ । सत्ताईसवें भव में लान्तव स्वर्ग से चयकर इसी भरत क्षेत्र के साकेत नगर में हरिषेण नाम का राजा हुआ। राज्य - सुख भोगकर और जिन-दीक्षा ग्रहण करके अट्ठाईसवें भव में वह महाशुक्र स्वर्ग का देव हुआ । उनतीसर्वे भव में धातकी खण्डस्य पूर्व दिशा सम्बन्धी विदेह क्षेत्र की पूर्व भाग- स्थित पुण्डरीकिणी नगरी में प्रियमित्र नाम का चक्रवर्ती हुआ। अन्त में जिन दीक्षा लेकर यह तीसवें भव में सहस्रार स्वर्ग में देव हुआ। नन्दराजा और सोलहवें स्वर्ग का देव सहसार स्वर्ग से चलकर इकतीसवें भव में इसी भूमण्डल पर चरित्रनायक का जीव 'नन्दन' नाम का राजा हुआ। इस भव में उसने प्रोष्ठिल मुनिराज के पास धर्म का स्वरूप सुना और जिनदीक्षा धारण कर ली। तदनन्तर षोडषकारण भावनाओं का चिन्तवन करते हुए उसने तीर्थकर प्रकृति का बन्ध किया । और जोवन के अन्त में समाधिपूर्वक प्राण छोड़कर बत्तीसवें भव में अच्युत स्वर्ग का वह इन्द्र हुआ। बाईस सागरोपम काल तक दिव्य सुखों का अनुभव कर जीवन के समाप्त होने पर वहाँ से चयकर वह देव अन्तिम तीर्थंकर महावीर के नाम से इस वसुधा पर अवतीर्ण हुआ । इस तरह वर्द्धमान का वर्तमान रूप कई भवों में किये गये सुकृत्यों के परिणाम स्वरूप है। 'भगवान की आत्मा ने पूर्वभवों में कदीर आत्मसाधना की थी। फलस्वरूप इस मनुष्य जन्म में एक अपूर्व अलौकिकता के तत्त्व उनके चरित्र में विद्यमान रहे। उक्त स्थित्यंकन के परिप्रेक्ष्य में वर्द्धमान चरित्र की अतिशयता एवं उनके विचारों की भगवान महावीर का चरित्र-चित्रण :
SR No.090189
Book TitleHindi ke Mahakavyo me chitrit Bhagavana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushma Gunvant Rote
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages154
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size3 MB
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