SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 102
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भगवान महावीर की जन्मतः बाल्यावस्था से वैराग्य मूलक मनोधारणा रही। युवावस्था में उनकी यह वैराग्य भावना दृढ़तम हो गयो । इस जन्म में लो विरागता का भाव चरम उत्कर्ष पर उदित हुआ, उसके मूल रहस्य को जाने बिना महावीर के चरित्र कं यथार्थ का अंकन सही रूप में नहीं हो सकेगा। 'भगवान महावीर की इस धारणा का कारण उनके पूर्वभवों के संचित कर्म हैं। उन्हें कुमार अवस्था में ही पूर्वभवों का जातिस्मरण हो जाता है। किस प्रकार 33 पूर्वभवों में मिथ्यात्व के कारण भ्रमण करना पड़ा और यह दुर्लभ मनुष्य जन्म अब प्राप्त हुआ है। अतः आत्मविकास की साधना में रत रहकर मुक्ति को पाना उन्होंने अपने जीवन का चरम लक्ष्य बनाया। महावीर का वैराग्य ज्ञानमूलक था। वह अनिमित्तिक वैराग्य घा। पूर्वजन्मों के संचित पुण्योदय के कारण जन्मतः वे छद्मस्थ ईश्वर के रूप में ही थे। अतः वे मति, श्रुति, अवधि तीन ज्ञानधारी थे। पूर्वभवों के अनुशीलन करने पर ही भगवान महावीर के चरित्र की वैज्ञानिकता का यथार्थ बोध हो सकेगा। किसी भी पहान् पुरुष के चरित्र के अनुशीलन में उस चरित्र की पार्श्वभूमि, उसकी मनःस्थिति,आत्मगत स्थिति को समझना अत्यन्त आवश्यक है। स्थित्यंकन के बोध मात्र से चरित्र-नायक की क्रिया-प्रतिक्रियाओं के चित्रण का सम्यक् बोध हो सकता है। स्थित्यंकन का वर्णन पूर्वदीप्ति या फ्लैशवेक शैली में प्रस्तुत किया जाता है। जिसमें स्मृति के माध्यम से आत्मानुभूत तथ्यों का निरपेक्ष अंकन होता है। ये पूर्वभव की घटनाएँ वर्तमान स्थिति विशेष से सम्बद्ध होती हैं अथवा उनकी सार्थकता प्रदान करने में सहायक होती हैं। भगवान महावीर को भगवत् रूप में मान लेने से भक्तजनों को उनके लौकिक जीवन की समस्त घटनाएँ अलौकिक ही प्रतीत होती हैं। अनुभाव-चित्रण भावों का मन में उदय होने के बाद शरीर में जो विकार दिखाई देते हैं, उन्हें अनुभाव कहते हैं। वे अनुभाव हमें पात्र के भावों का अनुभाव कराते हैं। अतः पात्र का अन्तरंग समझने के लिए अनुभावों का अध्ययन जरूरी होता है। “अनुभावयन्ति इति अनुभावाः ।" ___ अर्थात् भावों के अनुभव होने को अनुभाव कहते हैं। प्रत्येक स्थिति में उसकी प्रतिक्रिया तुरन्त प्रकट नहीं होती। अतः प्रतिक्रिया व्यक्त होने से पहले स्थिति प्रभाव से पात्र की मनोदशा में होनेवाले परिवर्तन जानने के लिए पात्र के अनुभावों पर ही निर्भर रहना पड़ता है। स्थित्यंकन के बाद तुरन्त क्रिया-प्रतिक्रिया का वर्णन अनुभावों के वर्णन के अभाव में अस्वाभाविक और कात्रेम हो जाता है। सहजात प्रतिक्रिया को दबाकर सायास की गयी बनावटी प्रतिक्रिया के आधार पर किया गया अनुमान भी गलत हो 108 :: हिन्दी के महाकाव्यों में चित्रित भगवान महावीर
SR No.090189
Book TitleHindi ke Mahakavyo me chitrit Bhagavana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushma Gunvant Rote
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages154
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy