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चित्रण पौराणिक शैली में जैन परम्परागत रूप में विश्वसनीय ढंग से प्रस्तुत हुआ है। जैन आगम की मान्यता के अनुसार अहंत एवं सिद्धं रूप के चित्रण में कवियों को अपूर्व सफलता प्राप्त हुई हैं।
स्थित्यंकन
किसी पात्र की व्यक्त प्रतिक्रिया के आधार पर उसके गुणों के बारे में किया गया अनुमान कदाचित् भ्रामक हो सकता है। अतः किसी पात्र के चरित्र-चित्रण को सही रूप से जानने के लिए उस पात्र की विशेष प्रतिक्रिया किस विशेष परिस्थिति में व्यक्त की गयी है, यह जानना भी बहुत आवश्यक होता है। स्थिति विशेष के कारण कोई प्रतिक्रिया महत्त्वपूर्ण वा कम महत्त्वपूर्ण होती है। इसी स्पष्टता के लिए स्थिति का चित्रण अनिवार्य है ।
रणवीर संग्रा का कथन है कि "किसी व्यक्ति की स्थिति विशेष (सिच्युएशन) को जाने बिना उसकी व्यक्त क्रिया-प्रतिक्रियाओं के आधार पर उसके चरित्र के बारे में लगाया गया अनुमान भ्रामक सिद्ध हो सकता है, क्योंकि किसी की क्रियाकलाप का विश्वसनीय मूल्यांकन उन्हें उस स्थिति के सन्दर्भ में रखकर ही किया जाता है जिसमें वे व्यक्त हुए हों। स्थितियाँ अपने भीतर उत्तेजकों को लिये रहती हैं जो व्यक्ति के आचरण को प्रेरित करके उद्दीप्त करती रहती हैं। "2
सिर्फ़ क्रिया देखने से उसका महत्त्व और क्रिया करनेवाले पात्र का चरित्र गुण स्पष्ट नहीं होता । उदाहरणार्थ, युद्धस्थिति का अनुचित लाभ उठाकर देश के रक्षा कोष के लिए दस हज़ार रुपये दान देनेवाला काला बाजारवाला व्यापारी और दस रुपये रक्षा कोष के लिए दान देनेवाली इसी युद्ध में मारे गये सैनिक की विधवा इन दोनों में किसका देशप्रेम श्रेष्ठ है? दस हजार रुपयों का दान या दस रुपयों का दान । यह कार्य देखने से स्पष्ट होता हैं कि काला बाज़ारवाला व्यापारी श्रेष्ठ देशप्रेमी है। मगर स्थिति देखने के बाद उस विधवा का ही देशप्रेम सच्चा और श्रेष्ठ है, यह सिद्ध हो जाता है।
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आकृति - वेशभूषा-रूप वर्णन द्वारा पाठकों के मन में पात्र के बारे में जो अभिमत बनता है वह सत्य ही होगा, ऐसा नहीं है। जब तक पात्र विभिन्न स्थितियों से गुजरता नहीं, तब तक उसका स्वभाव अधिक स्पष्ट नहीं होता, इसीलिए श्रेष्ठ साहित्यकार अपने पात्रों का चरित्र-चित्रण करते समय पात्र की विशेष - क्रिया की विशेष स्थिति का सूक्ष्म से सूक्ष्म चित्रण करता है, जिससे पात्र के गुणावगुण का यथार्थ चित्रण होता है। आलोच्य महाकाव्यों में भगवान महावीर का चरित्र चित्रण करते समय कवियों ने इस स्थित्यंकन तत्त्व का प्रयोग किस प्रकार किया है, यह देखना आवश्यक है।
1. रणबीर रांगा हिन्दी उपन्यास में चरित्र चित्रण का विकास, पृ. 70
भगवान महावीर का चरित्र-चित्रण : 107