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******** ानाशाम् ********
शास्त्र - गुरु और मोक्ष का
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प्राचार्य श्री सुविधिसा
लक्षण
प्रपञ्चरहितं शास्त्रं, प्रपञ्चरहितो गुरुः।
प्रपञ्चरहितो मोक्षो, दृश्यते जिनशासने ॥२४॥ 7 अन्वयार्थ :
शास्त्रम्) शास्त्र (प्रपञ्चरहितम्) प्रपंच से रहित है। (गुरुः) गुरु * (प्रपञ्चरहितः) प्रपंच से रहित है। (मोक्षः) मोक्ष (प्रपञ्चरहितः) प्रपंच से* * रहित है ऐसा (जिनशासने) जिनशासन में (दृश्यते) देखा जाता है। * * अर्थ : जिनशासन में शास्त्र, गुरु और मोक्ष प्रपंच से रहित होते हैं । * भावार्थ : प्रपंच अनेकार्थक शब्द है। लोक में इसके प्रदर्शन, फैलाव,
स्पष्टीकरण, विशदव्याख्या, विविधता, दृश्यवस्तु. ढेर अथवा माया * इत्यादिक अर्थ रूढ़ हैं ।
इस कारिका में प्रपंच शब्द तीन बार प्रयोग में आया है। तीनों ही स्थान पर इसके भिन्न भिन्न अर्थ ग्रहण किये गये हैं। यथा१. पूर्वापर विरोध अथवा प्रमाण से बाधित। २, मायाचार अथवा आरंभ-परिग्रह।
३. भोगोपभोग का विस्तार। * अ. प्रपंच से रहित शासर : शास्त्र का समीचीन लक्षण करते * * हुए आचार्य श्री पूज्यपाद लिखते हैं -
पूर्वापरविरोधादि दूरं हिंसाद्यपासनम् । प्रामाणद्वयं संवादि शास्त्रं सर्वज्ञभाषितम् ।।
__(पूज्यपाद श्रावकाचार-७)* * अर्थात् : जो पूर्वापर के विरोध से रहित है, हिंसादि पापों से छुड़ाने वाला * * है, प्रत्यक्ष और परोक्ष इन दो प्रमाणों को कहने वाला है और सर्वज्ञभाषित के
है वह शास्त्र है। **********[६६ **********
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