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________________ ******** lisशत ******** *संकल्प और उसका फल Y संकल्प एव जन्तूनां,कारणं बन्धमोक्षयोः। वीतरागोऽपवर्गस्य,सरागो बन्धकारणाम् ॥६॥ अन्वयार्थ :(संकल्पः) संकल्प (एव) ही (जन्तूनाम्) प्राणियों के (बन्य) बन्ध और *(मोक्षयोः) मोक्ष का (कारणम्) कारण है। (वीतरागः) वीतरागसंकल्प *(अपवर्गस्य) मोक्ष का और (सरागः) सरागसंकल्प (बन्ध) बन्ध का (कारणम्) कारण है। * अर्थ :- संकल्प ही प्राणियों के बन्ध व मोक्ष का कारण है। इन दोनों * * में से वीतरागसंकल्प अपवर्ग का और सरागसंकल्प बन्ध का कारण है। * * भावार्थ :- संकल्प शब्द को परिभाषित करते हुए आचार्य श्री ब्रह्मदत्त * लिखते हैं - * पुत्रकलत्रादौबहिर्द्रव्ये ममेदमिति कल्पना सङ्कल्पः। (बृहद्र्व्य संग्रह - ४१) * अर्थात् : पुत्र,कलन आदि बाह्य द्रव्य में यह मेरा है ऐसी कल्पना करना संकल्प है। A अन्यत्र उन्होंने लिखा है - * बहिर्द्रव्यविषये पुत्रकलत्रादिचेतनाचेतनरूपे ममेदमिति स्वरूपः * संकल्पः । (परमात्मप्रकाश-१/१६) अर्थात् :- पुत्र, कलत्रादि चेतन और अचेतन बाह्यद्रव्यों में ये मेरे हैं * ऐसा ममत्वपरिणाप संकल्प है। * आचार्य श्री जयसेन लिखते हैं - * बहिर्द्रव्ये चेतनाचेतनमिश्रे ममेदमित्यादि परिणामः संकल्पः। (पंचास्तिकाय-७) ********** १५**********
SR No.090187
Book TitleGyanankusham
Original Sutra AuthorYogindudev
AuthorPurnachandra Jain, Rushabhchand Jain
PublisherBharatkumar Indarchand Papdiwal
Publication Year
Total Pages135
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size3 MB
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