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शानप्रदीपिका।
विपरीतेषु युद्ध स्यात् भानौ द्वादशके यदि ।
तत्र युद्धं न भवति शास्त्रे ज्ञानप्रदीपिके ॥२७॥ सूर्य यदि शत्रु या नीच राशि में हो तो स्थायी की हार होती है। लग्न से पंचम, षष्ठ और १२ वें में युद्ध होता है। यदि सूर्य द्वादश में हो तो युद्ध नहीं होता।
चरराशिस्थिते चन्द्रे चरराश्युदयेऽपि वा।
आगतारोहि सन्धान विपरीते विपर्ययः ॥२८॥ चन्द्रमा चर राशि में या चर लग्न में हो तो आगत शत्रु से संधि और अन्यथा युद्ध होगा।
युग्मराशिगते चन्द्रे स्थिरराश्युदयेऽपि वा ।
अर्द्धमार्ग समागत्य सेना प्रतिनिवर्तते ॥२६॥ चन्द्रमा यदि द्विस्वभाव राशि में हो और लग्न में स्थिर राशि हो तो सेना आधे रास्ते से आकर लौट जायगी।
सिंहायाः राशयः षट च भास्करः स्थायिरूपिणः ।
कांद्य क्रमेणैव चन्द्रो वै यायिरूपिकाः ॥३०॥ सिंह से लेकर मिथुन तक ६ राशियाँ और सूर्य ये स्थायो के रूप हैं। और बाकी ६ राशि और चन्द्रमा यायो के स्वरूप हैं।
___ स्थायी (?) यायो (?) क्रमेणैवं ब्रूयादग्रहवशाहलम् । इस प्रकार स्थायी और यायी के बल की विवेचना क्रम से होनी चाहिये ।
इति सेनागमनकाण्डः।
यात्राकाण्डं प्रवक्ष्यामि सर्वेषां हितकाम्यया । गमनागमनं चैव लाभालाभौ शुभाशुभौ ॥१॥ विचार्य कथयेद्विद्वान् पृच्छतां शास्त्रवित्तमः ।
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