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________________ प्रथम खण्ड/ प्रथम पुस्तक प्रश्न ९ निर्विकल्प किसे कहते हैं ? उत्तर प्रश्न १० उत्तर प्रश्न ११ उत्तर प्रश्न १२ उत्तर प्रश्न १३ उत्तर प्रश्न १४ उत्तर प्रश्न १५ उत्तर प्रश्न १६ उत्तर प्रश्न १७ उत्तर प्रश्न १८ उत्तर प्रश्न १९ उत्तर - - — - — - --- JA - 1 द्रव्य के प्रदेश भिन्न, गुण के प्रदेश भिन्न, पर्याय के प्रदेश भिन्न, उत्पाद के प्रदेश भिन्न, व्यय के प्रदेश भिन्न, ध्रुव के प्रदेश भिन्न, जिसमें न हों अर्थात् जिसके द्रव्य से, क्षेत्र से काल से, भाव से किसी प्रकार सर्वथा खण्ड न हो सकते हों, उसे निर्विकल्प या अखण्ड कहते हैं । (८) महासत्ता किसको कहते हैं ? सामान्य को, अखण्ड को, अभेद को । अवान्तरसता किसको कहते हैं ? विशेष को, खण्ड को, भेद को । महासत्ता अवान्तरसत्ता भिन्न-भिन्न हैं क्या ? नहीं, प्रदेश एक ही है, स्वरूप एक ही है, केवल अपेक्षाकृत भेद है। वस्तु सामान्यविशेषात्मक है। अभेद की दृष्टि से वह सारी महासत्ता रूप दीखती है। भेद की दृष्टि से वही सारी अवान्तर सत्ता रूप दीखती है जैसे एक ही वस्तु को सत् रूप देखना महासत्ता और उसी को जीवरूप देखना अवान्तर सत्ता है। (१५, १९, २६४, २६७, २६८ ) - ६१ - ( २६५ ) ( २६६ ) सामान्य विशेष से क्या समझते हो ? द्रव्य को अखण्ड सत् रूप से देखना सामान्य है और उसी को किसी भेद रूप से देखना विशेष है। जैसे एक ही वस्तु को सत् रूप देखना सामान्य है उसी को जीव रूप देखना यह विशेष है। वस्तु उभयात्मक है । (१५, १९) सत् को अखण्ड रूप से देखने वाली दृष्टियों का क्या नाम है ? सत् को अभेद दृष्टि से देखने को सामान्य दृष्टि, शुद्ध द्रव्यार्थिक दृष्टि, अखण्ड दृष्टि, अभेद दृष्टि, निर्विकल्प दृष्टि, अनिर्वचनीय दृष्टि, निश्चय दृष्टि, शुद्ध दृष्टि आदि अनेक नामों से कहा जाता है । (८४, ८८, २१६, २४७ ) सत् को खण्ड रूप से देखने वाली दृष्टियों का क्या नाम है ? सत् को भेद दृष्टि से देखने को विशेष दृष्टि, पर्याय दृष्टि, अंश दृष्टि, खण्ड दृष्टि, व्यवहार दृष्टि, भेद दृष्टि कहा जाता है। (८४, ८८, २४७ ) द्रव्य का विभाग किस प्रकार किया जाता है ? एक विस्तार कम से, दूसरा प्रवाह क्रम से । विस्तार क्रम में यह जानने की आवश्यकता है कि प्रत्येक द्रव्य कितने प्रदेशों का अखण्ड पिण्ड है और प्रवाह क्रम में उसके अनन्त गुण, प्रत्येक गुण के अनन्त अविभाग प्रतिछेद तथा उनका अनादि अनन्त हीनाधिक परिणमन जानने की आवश्यकता है। द्रव्यों का विस्तार कम (लम्बाई) बताओ ? धर्म अधर्म और एक जीव द्रव्य असंख्यात प्रदेशी हैं, आकाश अनन्त प्रदेशी है, कालाणु तथा शुद्ध पुद्गल परमाणु अप्रदेशी अर्थात् एक प्रदेशी है । (२५) एक द्रव्य के प्रत्येक प्रदेश को एक स्वतन्त्र द्रव्य मानने में क्या आपत्ति है ? ( ३१ ) गुण परिणमन प्रत्येक प्रदेश में भिन्न-भिन्न रूप से होना चाहिये जो प्रत्यक्षबाधित है। ( ३२ से ३७ ) द्रव्य का चतुष्टय किसे कहते हैं ? देश-देशांश - गुण गुणांश को द्रव्य का चतुष्टय कहते हैं ।
SR No.090184
Book TitleGranthraj Shri Pacchadhyayi
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
Author
PublisherDigambar Jain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year
Total Pages559
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size18 MB
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