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________________ प्रथम खण्ड/प्रथम पुस्तक ५५ भावार्थ-इससे पहले यह सिद्ध करके आये हैं कि उत्पाद व्यय धौव्य एक समय में एक सत् के ही पर्यायार्थिक नय से है। इस पर शंकाकार पूछता है कि जब एक ही समय है और एक ही सत् है तो कोई एक ही कहना पर्याप्त है। तीनों के आवश्यक कथन से क्या लाभ? समाधान २४९ से २६० तक तन्न यविनाभाव: प्रादुर्भातधुवव्ययानां हि । यरमादेकेल बिना न स्यादितरवयं तु तन्नियमान् ॥ २९॥ अर्थ-उपर्युक्त शंका ठीक नहीं है क्योंकि उत्पाद व्यय और धौव्य इन तीनों का नियम से अविनाभाव है क्योंकि एक को छोड़कर दूसरे दोनों भी नियम से नहीं रह सकते । अपि च द्वाभ्यां ताभ्यामन्यतमाम्यो विना न चान्यतरम् । एकं ना तदवश्यं तत्त्रयमिह वस्तुसंसिद्भयै ॥ २० ॥ अर्थ-अथवा बिना किहीं भी दो के कोई एक भी नहीं रह सकता है। इसलिये ये आवश्यक है कि वस्तु की भले प्रकार सिद्धि के लिये उत्पाद, व्यय, धौव्य तीनों एक साथ हों। अथ तद्यथा विनाशः पादुर्भातं विना न भावीति । नियतमभावस्य पुनविन पुरस्सरत्वाच्च ॥२५१॥ अर्थ-तीनों का परस्पर अविनाभाव है, इसी बात को स्पष्ट किया जाता है कि विनाश बिना उत्पाद के नहीं हो सकता क्योंकि किसी पर्याय का अभाव नियम से भाव पूर्वक ही होता है। उत्पादोऽपि न भावी व्ययं बिना वा तथा प्रतीतत्वात् । प्रत्याजन्मनः किल भावस्याभावतः कृतार्थत्वात् ॥२५२॥ अर्थ-उत्पाद भी बिना व्यय के नहीं हो सकता, क्योंकि ऐसी प्रतीति है कि नवीन जन्म लेने वाला भाव, अभाव से कृतार्थ होता है। भावार्थ-किसी पर्याय का नाश होने पर ही तो दूसरी पर्याय हो सकती है। पदार्थ तो किसी न किसी अवस्था में सदा रहता ही है। इसलिये यह आवश्यक है कि पहली अवस्था का नाश होने पर ही कोई नवीन अवस्था हो। उत्पादध्वंसौ वा द्वातपि न स्तोविनापि तद्धौव्यम् । भावस्याभावस्य च वस्तुत्वे सति तदाश्रयत्वाद्वा ॥ २५३॥ अर्थ-अथवा बिना धौव्य के उत्पाद,व्यय दोनों भी नहीं हो सकते क्योंकि वस्तु की सत्ता होने पर ही उसके आश्रय से भाव और अभाव (उत्पाद और व्यय) रह सकते हैं। अपि च धौव्यं न स्यादुत्पादव्ययद्वयं विना नियमात् । यदिह विशेषाभावे सामान्यस्य च सतोप्यभावत्वात ॥ २५४ ।। अर्थ-अथवा बिना उत्पाद और व्यय दोनों के प्रीव्य भी नियम से नहीं रह सकता है क्योंकि विशेष के अभाव में सामान्य सत् का भी अभाव ही है। भावार्थ-वस्तु सामान्य विशेषात्मक है। बिना सामान्य के विशेष नहीं हो सकता और बिना विशेष के सामान्य भी नहीं हो सकता । उत्पाद, व्यय विशेष है। धौव्य सामान्य है। इसलिये बिना उत्पाद व्यय विशेष के धौव्य सामान्य नहीं बन सकता है और इसी प्रकार बिना धौव्य सामान्य के उत्पाद व्यय विशेष भी नहीं बन सकते हैं। एवं चोत्पादादित्रयस्य साधीयसी व्यवस्थेह । नैवान्यथान्यनिन्हववदतः स्वस्यापि घालकत्वाच्च ॥२५५॥ अर्ध-इस प्रकार वस्तु में उत्पाद, व्यय, धौव्य की व्यवस्था घटित करना चाहिये । अन्य किसी प्रकार उनकी व्यवस्था नहीं घटित की जा सकती है क्योंकि दूसरों के न मानने से अपनी मान्यता का भी विघात होता है।
SR No.090184
Book TitleGranthraj Shri Pacchadhyayi
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
Author
PublisherDigambar Jain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year
Total Pages559
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size18 MB
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