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द्वितीय खण्ड/सातवीं पुस्तक
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अनन्तानुबन्धी लेश्या का फल (१) अनन्तानुबन्धी की उत्कृष्ट कृष्णा लेश्या भाव द्वारा तो आत्मा उत्कृष्ट स्थिति वा उत्कृष्ट अनुभाग सहित नरकायु
को बाँधता है और इसही लेश्या सहित जीव मरण को पाकर सप्तम नरक में उपजता है। अनत्कष्ट कष भावद्वारा आत्मा अनत्कृष्ट स्थिति अनुभाग सहित नरक गति तथा नरकाय बांधता है और इस ही लेश्या में मरण करे तो पञ्चम नरक के अन्तिम पाथड़े से लगाकर छठे नरक के अन्तिम पाथड़े पर्यन्त उत्पन्न होता है। जघन्य कृष्ण लेश्या भाव कर आत्मा मनुष्य तिर्यञ्च आयु बाँधकर मनुष्य तिर्यञ्च दोनों गतियों में उत्पत्र होता है और
जघन्य कृष्ण लेश्या भाव कर जीव देवायु बाँधकर भवनत्रिक देवगति में उत्पन्न होता है। २) अनन्तानुबन्धी नील लेश्या के उत्कृष्ट भाव द्वारा जीव मध्यम स्थिति अनुभाग सहित नरकायु बाँधता है और इसी
लेश्या में मरण करे तो पंचम नरक में उत्पन्न होता है। अनत्कृष्ट नील लेश्या के भाव कर आत्मा मध्यम स्थि अनुभाग सहित नरकायु को बाँधता है और इसी लेश्या में मरकर तीसरे नरक के अन्तिम पाथड़े से लेकर चौथे नरक के अन्तिम पाथड़े पर्यन्त उपजता है। जघन्य नील लेश्या भाव कर जीव मनुष्य तिर्यञ्च आयु बाँधता है और मरण कर मनुष्य तिर्यञ्च गति में ही उत्पत्र होता है। जघन्य नील लेश्या भाव द्वारा जीव देवायु को बाँधकर
भवनत्रिक देवगति में ही उत्पन्न होता है। ) अनन्तानुबन्धी कापोत लेश्या के उत्कृष्ट भाव द्वारा जीव मध्यमस्थिति अनुभाग सहित नरकायु बाँध मरण कर तीसरे नरक में उत्पन्न होता है। अनुत्कृष्ट कापोत लेश्या भाव द्वारा परिवर्तमान जघन्यस्थिति अनुभाग सहित नरकायु को बाँधकर मरण को पाकर प्रथम नरक से लगा कर दूसरे नरक पर्यन्त उपजता है। कापोत लेश्या के जघन्य भाव द्वारा जीव मनुष्य तियंञ्च आयु बाँध कर मनुष्य तिर्यञ्च गति में उत्पन्न होता है। कायोत लेश्या
के जघन्य भाव द्वारा आत्मा देवायु को बाँधकर भवनत्रिक देवों में उत्पन्न होता है। (४) अनन्तानुबन्धी पीत लेश्या के भाव द्वारा आत्मा मनुष्य तिर्यञ्च तो देवायु बाँध मरणकर कल्पवासी देव होता
है और देव इसी लेश्या के स्थानों द्वारा मनुष्य तिर्यंच आयुबाँध मरणकर मनुष्य तिर्यंच दोनों गतियों में उपजता है। (५) अनन्तानुबन्धी पद्मलेश्या भाव द्वारा मनुष्य तिर्यंच तो देवायु बाँध मरण कर कल्पवासी देव होते हैं और देव इसी
लेश्या भाव द्वारा मनुष्य तिर्यंच आयु बाँध मरण कर मनुष्य तिर्यंच दोनों गतियों में उत्पत्र होते हैं। (६) अनन्तानुबन्धी शुक्ल लेश्या भाव द्वारा मनुष्य तिर्यच तो देवायु बाँध मरण कर कल्पवासी देव होते हैं और देव इसी लेश्या भाव द्वारा मनुष्य गति आयु बाँधकर मनुष्य गति में उत्पन्न होते हैं।
अप्रत्याख्यान लेश्या का फल (१) अप्रत्याख्यान की छहों लेश्या भाव द्वारा मनुष्य तिर्यंच के तो देवगति देवायु का ही बन्ध होता है और मरण में
विशेषता है। कृष्ण नील लेश्या भावों में तो मरण ही नहीं है। कापोत लेश्या के उत्कृष्टादि भावों सहित जीव प्रथम नरक में उपजता है और मध्यम भावों कर मरा हुआ जीव भोगभूमि में तिर्यञ्च होता है और जघन्यादि
भावों सहित मरा हुआ जीव भोगभूमि में मनुष्य होता है। (२) पीत पद्म शुक्ल लेश्या भावों द्वारा मरा हुआ जीव कल्पवासी देव ही होता है और नारकी कृष्ण नील कापोत
लेश्या भावों को धारण करते हैं और मनुष्य गति में ही उत्पत्र होते हैं। देव पीत पद्म शुक्ल लेश्या भावों द्वारा मनुष्य आयु ही बाँधते हैं और मरण कर मनुष्य गति में ही उपजते हैं।
__ प्रत्याख्यान लेश्या का फल प्रत्याख्यान की पीत पद्म शुक्ल लेश्या भावों द्वारा मनुष्य वा तिर्यंच देवायु ही बाँधते हैं और मरण कर उत्तम कल्पवासी देवों में उपजते हैं।
संज्वलन लेश्या का फल संचलन की पीत पा लेश्या वाला मनुष्य मुनिपद में रहता देवायु ही बाँधता है और मरकर कल्पवासी देव उत्तम इन्द्रादिक होता है और शुक्ल लेश्या वाला उत्तम देवायु बाँध मरणकर कल्पातीत जो ९ ग्रीवक या ९ अनुदिश विमान वा सर्वार्थसिद्धि सहित ५ अनुसर विमान में उपजता है।