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________________ ग्रन्थराज श्री पञ्चाध्यायी (५२) ३. दान - उनको दान न करे । (५३) १. अनुप्रयाग .. ( उनके लेो, अपने खान पान में अधिक न करे। (५४) ५. आलाप - प्रणति सहित संभाषण, उसको आलाप करते है, वह उनके साथ न करे। (५५) ६. संलाप - गुण, दोष सम्बन्धी पूछना कि बारंबार भक्ति करना संलाप है वह उनकी न करें। अब सम्यक्त्व के छ: अभंग कारण लिखते हैं। जो सम्यक्त्व के भंग के कारण पाकर न डिगे उनको अभंग कारण कहते है। उनके छः भेद हैं। (५६ से ११) - १. राजा, २. जनसमुदाय, ३. बलवान, ४. देव, ५. पितादिक बड़े जन और ६. माता। ये सम्यक्त्व के अभंगपने में छ: भय हैं। उनको जानता रहे पर उनके भय से निजधर्म तथा जिनधर्म को न तजे। अब सम्यक्त्व के छः स्थान लिखते हैं: (६२) १. जीव है - आत्मा अनुभव सिद्ध है। चेतना में चित्त लीन करे; जीव अस्ति रूप है वह केवल जान द्वारा । प्रत्यक्ष है। (६३) २. नित्य है - द्रव्यार्थिक नय से नित्य है। (६४) ३. कर्ता है - आत्मा पुण्य-पाप का कर्ता है। (६५) ४. भोक्ता है - आत्मा पुण्य-पाप का भोक्ता भी है। यह पुण्य पाप का कर्ता भोक्तापना मिथ्यादृष्टि में है। निश्चय नय से आत्मा उनका कर्ता कि भोक्ता नहीं है। (६६) ५. अस्ति ध्रुव ( मोक्ष ) है - निर्वाण स्वरूप अस्ति ध्रुव है। व्यक्त निर्वाण वह अक्षय मुक्ति है और (६७) ६. मोक्ष का उपाय है - सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र वह मोक्ष का उपाय है। सम्यक्त्व के ये ६७ भेद परमात्मा की प्राप्ति का उपाय है। हमारा नोट- सम्यक्त्व तो एक ही प्रकार का होता है। उसमें भेद नहीं होते। उससे अविनाभावी उस सम्यग्दृष्टि आत्मा के ज्ञान, चारित्र आदि में क्या-क्या विशेषतायें आ जाती हैं उनका यह कथन है। चिद्विलास के अतिरिक्त और किसी शास्त्र में हमारे देखने में नहीं आया है। ममक्षओं के लिये अत्यन्त उपयोगी समझकर यहाँ दे दिया है। कण्ठस्थ करने योग्य प्रश्नोत्तर प्रश्न २३० - सम्यग्दर्शन किसको कहते हैं ? उत्तर - आत्मा के सम्यक्त्व ( श्रद्धा) गुण की स्वभावपर्याय को सम्यग्दर्शन कहते हैं। यह शुद्ध भाव रूप है। राग रूप नहीं है। आत्मा की एक शुद्धि विशेष का नाम है। तत्त्वार्थश्रद्धान या आत्मश्रद्धान उसका लक्षण है। ये चौथे से सिद्ध तक सब जीवों में एक जैसा पाया जाता है। प्रश्न २३१ - मिथ्यादर्शन किसको कहते है ? उत्तर - आत्मा के सम्यक्त्व ( श्रद्धा) गुण की विभाव पर्याय को मिथ्यादर्शन कहते हैं। यह मोह रूप है। आत्मा में कलुषता है। स्वपर का एकत्त्व इसका लक्षण है। प्रश्न २३२ - सम्यक्त्व का लक्षण स्वात्मानुभूति क्या है ? उत्तर- सम्यग्दृष्टि का मति श्रुत ज्ञान जिस समय सम्पूर्ण परज्ञेयों से हट कर मात्र आत्मानुभव करने लगता है उसको स्वात्मानुभूति कहते हैं तथा सम्यग्दर्शन की महचरता के कारण और बुद्धिपूर्वक राग के अभाव के कारण इसा का निश्वयसम्यग्दर्शन भी कहते हैं।
SR No.090184
Book TitleGranthraj Shri Pacchadhyayi
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
Author
PublisherDigambar Jain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year
Total Pages559
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size18 MB
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