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प्रथम खण्ड/प्रथम पुस्तक
भावार्थ-बेंत का दृष्टान्त मोटा है। इसलिये ग्राह्य अंश (एक देश) लेना चाहिये। बेंत यद्यपि बहुत से परमाणुओं का समूह है तथापि स्थूल दृष्टि से वह एकही द्रव्य समझा जाता है। इसी अंश में उसकादशन्त दिया गया है।बेंत अखण्ड रूप वस्तु है इसलिए एक प्रदेश को हिलाने से उसके सम्पूर्ण प्रदेश हिल जाते हैं। यदि अखण्ड स्वरूप अनेक प्रदेशी उसे न मानकर उसके एक-एक प्रदेश को जुदा-जुदा द्रव्य समझा जाय तो जिस देश में बेत को हिलाया जावे उसी देश में उसको हिलना चाहिये, सब देश में नहीं परन्तु, यह प्रत्यक्ष बाधित है। इसलिये वस्तु अनेक देशांशों का अखण्ड पिण्ड है।
पोशारदविनयात्रखण्डवर्जितः स यथा ।
परमाणुरेव शुद्धः कालाणुर्वा यथा स्वतः सिद्धः ॥ ३६॥ अर्थ- (इस प्रकार यद्यपि अखण्डित अनेक देश वस्तु का समर्थन हो जाता है तो भी सब वस्तुयें ऐसी नहीं है किन्तु कोई-कोई द्रव्य एक प्रदेशवाला भी है और वह खण्ड रहित है ( अर्थात् अखण्ड एक प्रदेशी भी कोई द्रव्य है ) जैसे पुद्गल का शुद्ध परमाणु और कालाणु। ये स्वतःसिद्ध ही एक-एक प्रदेशवाले द्रव्य हैं । खण्ड होकर एक प्रदेशी नहीं
हुये हैं।
न स्याद्व्यं क्वचिदपि बहुपदेशेषु रवण्डितो देशः ।
तदपि द्रव्यमिति स्यादरखण्डितानेकदेशमदः ॥ ३७॥ अर्थ-इससेजात होता है कि कहीं भी बहत प्रदेशों कोखण्डित करके एक अंश रूप द्रव्य नहीं हो स सर्वत्र "यह भी वही द्रव्य है"। इस प्रकार का प्रत्यय होने से द्रव्य अखण्डित अनेक प्रदेश वाला सिद्ध होता है।
नोट- द्रव्य के अखण्डित शरीर को देश कहते हैं और उसकी काल्पनिक देशांश कल्पना को प्रदेश कहते हैं। यह तो वास्तविक अर्थ है पर संस्कृत भाषा में कहीं-कहीं पर देश के लिये प्रदेश भी प्रयोग कर देते हैं और प्रदेशों के लिये देश तो बहुत प्रयोग कर लेते हैं। सो अर्थ समझते समय यह ध्यान रखने की आवश्यकता है। भूल नहोजाये।
२३ से ३७ तक का सार उक्त विवेचन से दो बातें निष्पन्न होती हैं(१) या तो द्रव्य अखण्डित अनेक प्रदेशवाले हैं। (२) या अखंडित एक देशवाले हैं। (१) अखण्डित अनेक देशवाला द्रव्य तो इसलिये है कि द्रव्य के किसी एक भाग में गुण परिणमन होने पर उसका
परिणमन समस्त द्रव्य में देखा जाता है। (२) तथा अखण्डित एक देशवाला द्रव्य इसलिये है कि जैसे द्वि-अणुक आदि स्कंधों का विभाग किया जा सकता
है वैसे अणु का विभाग करना संभव नहीं है। (१) अखण्डित अनेक देशवाले द्रव्य चार हैं- जीव, धर्म, अधर्म और आकाश। (२) अखण्डित एक देशवाले द्रव्य दो हैं- पुद्गलाणु और कालाणु। ___ नोट-स्कंध को जो अनेक प्रदेशी कहा जाता है वह औपचारिक कथन है। शुद्ध आदेश में उपचार का ग्रहण नहीं होता।
नोट-श्लोक २३ से यहाँ तक देशांश का-विस्तार क्रम का अर्थात् द्रव्य की चौड़ाई का निरूपण हुआ। अब लम्बाई का वर्णन करते हैंद्रव्य के ऊर्ध्व क्रम (लम्बाई ) का वर्णन ३८ से ६३ तक
अथ चैत ते प्रदेशाः सविशेषा द्रव्यसंज्ञया भणिताः ।
अपि च विशेषा: सर्वे गुणसंज्ञास्ते भवन्ति यावन्तः ॥३८॥ अर्थ-ऊपर जिन देशांशों (प्रदेशों)का वर्णन किया गया है वे देशांश गुण सहित हैं। गण सहित उन्ही देशांशों की द्रव्य संज्ञा है। उन देशांशों में रहनेवाले जितने विशेष हैं उन सबकी गुण संज्ञा है।