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प्रस्तावना
कर्नाटक प्रदेश में श्रवणबेलगोल दिगम्बर जैनों का प्राचीन तीर्थ है । गोमटेश्वर भगवान् बाहुबली की एक ही पाषाण में निर्मित, सत्रह मीटर ऊँची अनोखी प्रतिमा के कारण यह स्थान विश्व में प्रसिद्ध हो गया है। आचार्य नेमिचन्द्र सिद्धान्त चक्रवर्ती की प्रेरणा से, गंगराज्य के मन्त्री और महासेनाध्यक्ष चामुण्डराय के द्वारा निर्माणित इस प्रतिमा का स्थापना महाभिषेक ईस्वी सन् 981 में हुआ था । 1981 के फरवरी-मार्च में इस प्रतिमा के सहस्राब्दी महोत्सव एवं महा-मस्तका - भिषेक का विशाल आयोजन हो रहा है । लाखों श्रद्धालुजन, अपनी अपनी शक्ति के अनुसार उनकी भक्ति का संकल्प कर रहे हैं । इस मंगल अवसर पर गोमटेश्वर स्वामी के प्रसाद की ही तरह 'गोमटेश गाथा' के रूप में अपनी श्रद्धा का यह पुंज, अपने पाठकों को समर्पित कर पाने के लिये मैं अपने आपको सौभाग्यशाली
हूँ ।
श्रवणबेलगोल का इतिहास बहुत प्राचीन है । महावीर और बुद्ध के तीन सौ वर्ष बाद से, जब से हमारे इतिहास के भौतिक अवशेष हमें उपलब्ध हैं, चन्द्रगिरि पर्वत पर घटने वाला एक अद्यावधि अविच्छिन्न घटनाक्रम हमें यहाँ प्राप्त होता है | श्रुतवली भद्रबाहु आचार्य, सम्राट् चन्द्रगुप्त मौर्य, और चाणक्य की जीवनी के विषय में पुराण और इतिहास लगभग एक ही स्वर में बोलते हैं । आचार्य भद्रबाहु के साथ मुनियों का संघ दक्षिणापथ की ओर गया और दिगम्बर मुनि के रूप में चन्द्रगुप्त मौर्य ने सल्लेखना के द्वारा चन्द्रगिरि पर देह त्याग किया, आज के अधिकांश इतिहास पण्डित इस तथ्य को स्वीकार करते हैं । जिन्हें इसकी प्रामाणिकता में सन्देह है, उनके पास पचास वर्ष की आयु में चन्द्रगुप्त मौर्य के द्वारा अनायास सिंहासन त्यागने और अपने यशस्वी जीवन का अज्ञात अन्त कर लेने के सम्बन्ध में कोई प्रामाणिक या तर्कसम्मत विकल्प नहीं है ।
आचार्य भद्रबाहु और सम्राट् चन्द्रगुप्त के इतिहास से जुड़ा हुआ, श्रवणबेल