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दर का भी भाग्योदय होनेवाला है ।
शर-संधान के दिन प्रातःकाल चामुण्डाराय ने चन्द्रप्रभ बसदि में अष्टम तीर्थंकर चन्द्रनाथ की अर्चना भक्ति करके, अपने समस्त परिकर और उपस्थित जनों के साथ, अष्ट द्रव्य से नेमिचन्द्राचार्य महाराज का पूजन किया। उस समय महाराज के नयन नत और दृष्टि अन्तर्मुखी थी । उन यतिनायक की मुद्रा देखकर सहसा जिनदेवन की स्मृति में, पूज्यपाद आचार्य द्वारा चित्रित, उमास्वामी भगवन्त का चित्र स्पष्ट-सा भासने
लगा
'मुनिपरिषद् मध्ये संनिषण्णं मूर्त्तमिव मोक्षमार्गमवाग्विसर्गं वपुषा निरूपयन्तं ।'
(वे आचार्य, मुनियों की सभा में बैठे हुए, प्रतिमा की तरह अचल, बोले बिना, मात्र अपने शरीर की निर्विकार स्थिरता से ही, मोक्ष - मार्ग का साक्षात् निरूपण कर रहे थे ।)
पूजन के उपरान्त महाराज के चरणों में अष्टांग प्रणिपात करके चामुण्डराय ने करबद्ध निवेदन किया
'कार्य बहुत बड़ा है स्वामी ! मेरी सामर्थ्य सीमित है । यदि कहीं कोई त्रुटि हो गई, कुछ अपूर्णता रह गई, तो जग हँसेगा इस क्षुद्र पर । सफलता के लिए आपका आशीर्वाद ही मेरा सम्बल है ।'
आचार्य महाराज ने आश्वासन दिया, 'चिन्ता मत करो भद्र ! प्रयत्न में प्रमाद मत करना, भाग्यपर भरोसा करना, सफलता अवश्य मिलेगी । कर्तृत्व के अहंकार से अपने को बचाकर रखना, तुम्हारा कल्याण होगा । चलो, शर-संधान की बेला उपस्थित है ।'
उधर, नीचे की ओर, उन बड़ी शिलाओं के मध्य, काष्ठ-आसन पर आचार्य विराजमान हुए । सामने ही चौकी पर चामुण्डाराय का धनुष और वह स्वर्ण वाण रखा था जो इस लक्ष्य शोध के लिए विशेष रूप से बनवाया गया था। सरस्वती ने रंग-विरंगे कनकचूर्ण से सुन्दर चौक पूर दिया । उत्सुकतापूर्वक बड़ी संख्या में लोग इस अश्रुतपूर्व अभियान को 'देखने के लिए यहाँ एकत्र हो गए थे ।
आचार्य ने एक बार बाहुबली भगवान् की जय का उद्घोष करके तीन बार पंच नमस्कार मन्त्र का स्वर सहित पाठ किया
णमो अरिहंताणं । णमो सिद्धाणं ।
णमो आइरियाणं । णमो उवज्झायाणं ।
गोमटेश - गाथा / ४३