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देखा । चन्द्रगिरि पर से शर-सन्धान करके, एक तीर विन्ध्यगिरि की दिशा में छोड़ने का संकेत उन्हें स्वप्न में प्राप्त हुआ। 'जिस शिला को वह वाण चिह्नांकित कर देगा, उसी का तक्षण करने पर बाहुबली की छवि प्रकट होगी। मातेश्वरी का संकल्प पूरा करने का यही मार्ग है। यही महामात्य के स्वप्न का आश्वासन था।
प्रातःकाल चामुण्डराय कुछ शीघ्र ही इस चिक्कवेट्ट पर पधार गये। जिनेन्द्र का दर्शन-पूजन करके वे आचार्यश्री के समक्ष उपस्थित हुए। उस समय आचार्यश्री अपने स्वप्न का ही चिन्तन कर रहे थे। वे यथाशीघ्र चामुण्डराय पर अपना मन्तव्य प्रकट कर देना चाहते थे। इधर चामुण्डराय स्वप्न की अपनी उपलब्धि को आचार्य के समक्ष प्रस्तुत करने के लिए अधीर थे। दोनों के मन में अपना मन्तव्य उजागर करने की उतावली थी, परन्तु चामुण्डराय को निमिषमात्र भी विलम्ब असह्य हुआ। बैठते ही उन्होंने अपनी बात प्रारम्भ कर दी। सारा वृत्तान्त सुनकर प्रसन्न होते हुए महाराज बोले
___ 'गोमट! समस्या का समाधान अब हमें प्राप्त हो गया है। यह विचित्र संयोग है कि ऐसा ही स्वप्न संकेत हमें भी मिला है। हमने विचारपूर्वक निर्णय कर लिया है, पोदनपुर अब हम नहीं जायेंगे। तुम्हारे पुरुषार्थ में और मातेश्वरी की भक्ति में वह सामर्थ्य है, जिसके बल पर यहीं, इसी पर्वत पर, उन भरतेश बाहुबली का आवाहन किया जा सकेगा। ___ 'इतना ही नहीं गोमट ! हम ऐसे ग्रहयोग भी स्पष्ट देख रहे हैं, जिनके अनुसार तुम्हारे द्वारा स्थापित यह प्रतिमा, सहस्रों वर्षों तक, कोटि-कोटि जनों को आनन्द प्रदान करती हुई स्थिर रहेगी। भव्यजन इसे धर्मसाधन का निमित्त बनायेंगे। उन अपराजेय योगी के दर्शन से मनुष्य में ऐसा पुरुषार्थ जागृत होगा, जिससे अनादि की मिथ्या वासनाओं पर मानव की विजय, सदाकाल सहज सम्भव होती रहेगी।' ___ 'तुम्हारा भाग्य है वत्स ! कि तुम इस महान् कार्य के लिए निमित्त बन रहे हो। आज तुम उस महाविग्रह की महिमा की कल्पना नहीं कर पाओगे। निर्मित होने पर ही जान पाओगे कि यह प्रतिमा देश-विदेश में, सारे भूमण्डल में अद्वितीय होगी। यह अनोखी कलाकृति समूचे विश्व को विस्मित करती हुई, दीर्घकाल तक स्थायी रहेगी। मातेश्वरी की भक्ति और तुम्हारी निष्ठा की कीर्ति ही, बाहुबली प्रतिमा के रूप में, दीर्घकाल के लिए यहाँ स्थापित हो जाना चाहती है।'
'विचार करो गोमट ! जो प्रतिमा संसार-पंक में फंसे हुए असंख्य ४० / गोमटेश-गाथा