________________ वीतरागी, उनकी छवि में अपना शाश्वत सहज-स्वरूप निहारता है। तब पथिक, कौन समग्र में उन्हें समझ पायेगा? कौन उनके दर्शन से अघायेगा? वे तो भव-भव तक अनिमेष दर्शनीय हैं। जन्म-जन्मान्तर तक निरन्तर आराध्य हैं। तब चलो कामना करें वे प्रिय पादारविन्द इस मन-मानस में, यह मन उनके उन पुनीत पद-पद्मों में, जन्म-जन्मान्तर भी तब तक निवास करें जब तक निर्वाण स्वयं पाया नहीं हमने। * तैव पार्दी मेंमै हृदये, मम हृदयं तवे पर्दद्वय लोनमें / / तिष्ठतु जिनेन्द्र तावत्, यावत् निर्वाणसंप्राप्तिः। Roman