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लोकदेवता गोमटेश्वर
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बाहुबली भले ही जैन आख्यान के राजकुमार महापुरुष रहे हों पर, यहाँ गोमटेश के रूप में, इस अल्पकाल में ही वे धर्मों और सम्प्रदायों से परे जनमानस में प्रतिष्ठित लोकदेवता का रूप ग्रहण कर चुके थे । उनके इस विलक्षण विग्रह की विख्याति इतने दिनों में ही दक्षिण सागर से हिमालय तक फैल चुकी थी । इन गोमटेश के दर्शन का आकर्षण भी सैकड़ों योजन से लोगों को यहाँ खींच लाया था ।
महामात्य को निर्देश देकर आचार्यश्री ने देश-देशान्तर के अनेक ख्यातिलब्ध जिज्ञासुओं, विधानों, कवियों, कलाकारों और साधकों को इस उत्सव में आमन्त्रित कराया था । सामान्यजनों के लिए ग्रामोंजनपदों में आमूल-चूल निमन्त्रण भेजे गये थे, अतः पुष्कल जन समुदाय यहाँ एकत्र हुआ था। महामात्य अपने गोमटेश की उस लोकपूज्य मान्यता को ही अधिकाधिक प्रश्रय देना चाहते थे । इसलिए उनके दर्शनों के लिए वर्ण या जाति का, ऊँच या नीच का, छोटे या बड़े का, कोई बन्धन उन्होंने यहाँ नहीं लगाया था ।
यहाँ गोमटेश्वर सबके भगवान् थे । सब उनके भक्त थे ।
गोमटेश - गाथा / १७७