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नदी का प्रवाह उसने रोक दिया था। उसके स्पर्श मात्र से रोगी बालक नीरोग हो जाते थे। ऐसे अतिशयों के कारण उसे 'भक्त शिरोमणि' 'चतुस्सभय संरक्षिका' और 'संस्कृति-मुकुटमणि' कहकर उसका आदर किया जाता था। __ रन्न द्वारा अत्तिमब्बे की ऐसी संस्तुति में तनिक भी अतिशयोक्ति नहीं थी। वह महिलारत्न वास्तव में कर्नाटक की देवी थी। महाकवि रन्न ने अपने अजितनाथ पुराण में, उपसंहार के साथ, उसके यशोगान के लिए एक पूरा अध्याय रचा था । अत्तिमब्बे जैसी विदुषी, गुणवती और कल्याणी नारी हमारे कर्नाटक के इतिहास में दूसरी नहीं हुई। शतशः वर्षों तक लोग सती गुणवती नारियों को 'अभिनव अत्तिमब्बे' कहकर इस महासती का गौरवपूर्ण स्मरण किया करते थे। गंगनरेश राचमल्ल ___ महामात्य के आग्रह भरे आमंत्रण का सम्मान करते हुए गंगराज, जगदेकवीर धर्मावतार नरेश राचमल्ल, अपने परिवार और परिकर सहित इस समारोह में आये थे। जिनवन्दना और साधुवन्दना के लिए उस दिन प्रातः काल जब वे यहाँ पधारे तब बड़े अन्तराल के उपरान्त मैंने उन्हें देखा था। वार्धक्य के सूचक चिह्न कुछ अधिक ही उग्रता के साथ उनके मुख पर मुझे दिखाई दिये। रोगों ने भी उन्हें कुछ अशक्त-सा कर दिया था। इस पर भो उस सदा विजेता वीर नरेश के प्रतापी और प्रभावशाली व्यक्तित्व की ठसक में कोई विशेष अन्तर मुझे नहीं लगा।
राजपुरुषों को गंगनरेश की ओर से राजकीय आमंत्रण भेजे गये थे। अतः अनेक छोटे-बड़े नरेश, सामन्त, राजपुरुष तथा धर्मगुरु भी इस महोत्सव के निमित्त यहाँ एकत्र हुए थे। समीपवर्ती अनेक धर्मस्थानों के वीर शैव एवं वैष्णव सन्त-महन्त और जैनेतर नागरिक भी बड़ी संख्या में उस दिन उपस्थित थे। पूरे कर्नाटक देश में दूर-दूर तक नेमिचन्द्राचार्य की ख्याति थी। जैन-जैनेतर सभी उनका भारी सम्मान करते थे। अनेक वीर शैव और वेदान्ती दार्शनिक उनके भक्त थे। अपनी धार्मिक सहिष्णुता, महान् विद्वत्ता और निस्पृह कठोर साधना के कारण उनकी बड़ी मान्यता थी। गंगनरेश और महामात्य की आचार्य के चरणों में श्रद्धा भक्ति थी, उस कारण एक प्रकार से 'राजगुरु' की तरह प्रजाजन उनका आदर करते थे। उनके वात्सल्यपूर्ण सद्व्यवहार के कारण यह अतिथि समुदाय अनायास ही यहाँ एकत्र हो गया था।
१७६ / गोमटेश-गाथा