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२२. विवशता का युद्ध
भरत के सैन्यदल को पोदनपुर की सीमा तक पहुँचने में अधिक समय नहीं लगा । चक्रवर्ती का वह सहस्र आरोंवाला दिव्य चक्र उनकी विशाल चतुरंगिणी सेना के आगे-आगे चल रहा था । इसी चक्र का अटल नियोग पूरा करने के लिए, एक ही पिता के दो पुत्र आज युद्धस्थल में परस्पर जूझने पर विवश हो गये थे । बाहुबली अपनी छोटी-सी सेना के साथ पहले से ही राज्य की सीमा पर उपस्थित थे । वितस्ता नदी के पश्चिम में थोड़ी-थोड़ी दूर दोनों सेनाओं के कटक स्थापित हुए । यात्रा - श्रम से क्लान्त भरत के सैनिक भोजन विश्राम की व्यवस्था में जुट गये । अनेक प्रमुख जन दूसरे दिन प्रारम्भ होनेवाले युद्ध की संयोजना में संलग्न हो गये ।
दैवयोग से हठात् उपस्थित हो जानेवाली इस युद्ध की भूमिका ही अनोखी थी । चक्रवर्ती भरत ने पोदनपुर को अपने राज्य-समूह की तालिका में सम्मिलित करने के लिए यह अभियान किया था । इसी कारण पोदनपुर-नरेश ने अपनी स्वाधीनता की रक्षा के लिए, चक्रवर्ती से टक्कर लेने का संकल्प किया था । ये दोनों प्रतिपक्षी सगोत्री ही नहीं, भाई-भाई थे । उनका वात्सल्य लोक में अनुश्रुतियों की तरह विख्यात था। दोनों अपने युग के पराक्रमी महापुरुष थे। दोनों महान् बलवान, अमित बुद्धि और अपार धैर्य के स्वामी थे। दोनों की नीति-निपुणता और अनुकम्पा, सदाचार और प्रजा - वत्सलता, जगत् के लिए आदर्श मानी गई थी। हर दृष्टि से वे दोनों ही वीर अपने महान् पिता, ऋषभदेव के सुयोग्य पुत्र थे ।
भरत और बाहुबली दोनों का संघर्ष तो कल होनेवाला था, पर दोनों के ही मन में विचारों का द्वन्द्व, भावनाओं का टकराव, अनेक दिनों