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________________ २१. युद्ध की विवशता निराशा से विवर्ण और यात्रा श्रम से क्लान्त, दक्षिणांक पोदनपुर से लौटकर जब अपने स्वामी की सभा में प्रकट हुआ तब उसके बोलने के पूर्व, उसकी आकृति ने ही प्रत्येक सभासद को परिणाम से परिचित करा दिया। ___ 'पोदनपुर-नरेश को अयोध्या आकर चक्र का सम्मान करना स्वीकार नहीं हुआ। राज्य की सीमा पर चक्रवर्ती से युद्ध के लिए उनकी सेना सन्नद्ध है।' उसने सन्देश पूरा किया और सम्राट के आदेश की प्रतीक्षा में खड़ा हो गया। __ भरत ने अपने कानों से जो सुना, मन को उस पर सहसा विश्वास नहीं हुआ। उन्होंने बात को स्पष्ट करना चाहा___'बाहुबली का बचपना अभी तक गया नहीं। हमारा वह भ्राता विनोदी भी तो बहत है। कहीं ऐसा तो नहीं कि उसने विनोद में कोई उत्तर दिया हो और दूत ने कुछ अन्यथा अर्थ लगा लिया हो ?' ___ 'सेवक से ऐसा प्रमाद नहीं हुआ स्वामी ! दास ने तो महाराज को समझाने का भी प्रयास किया परन्तु सफलता उसके भाग्य में नहीं थी।' कहते हुए दूत ने बाहुबली के साथ अपनी वार्ता का सारा वृत्तान्त सुना दिया। 'तब चक्रवर्ती का यह पद हमें अभीष्ट नहीं है। अपने ही भ्राता के रक्त से अभिषिक्त सिंहासन पर भरत क्षण-भर भी बैठ नहीं सकेगा। समस्या का शान्तिपूर्ण समाधान प्रस्तुत किया जाय, अन्यथा चक्र जहाँ स्थिर है वहीं नवीन आयुधशाला का निर्माण कर दिया जाय। भूमि तो वह भी भरत की ही है।' 'चक्रवर्ती का पद इच्छा अनिच्छा पर निर्भर नहीं होता महाराज ! वह
SR No.090183
Book TitleGomtesh Gatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiraj Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages240
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Story
File Size26 MB
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