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666/Go. Sa. Jivakanda
Maya 634-641
When the Palle are divided by their respective divisors, the measure of their respective amounts is obtained. By subtracting the number of Jivas who have attained the Gunasthanas from their respective total amounts, the amount of Mithyast Jivas is obtained. ||641||
**Special Note:** Ga. 634-641 - When one less than the lower rare (one less than the innumerable part of a Pravali) is divided into the upper rare Progh, the time of conduct (divisor) of the Asanyat Samyagdristi is obtained.
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६६६/गो. सा. जीवकाण्ड
माया ६३४-६४१
सगसगमवहारेहि पल्ले भजिदे हवंति सगरासी।
सगसगगुणपडिवण्णे सगसगरासीसु अथरिणदे वामा॥६४१॥ गाशाय:३४ --- गुरगयामा द्रव्यप्रमाण में असंयत सम्यग्दृष्टि, सम्यग्मिथ्यापिट, सासादन सम्यग्दृष्टि गुणस्थानों के भागहारों का जो प्रमाण कहा गया है, उसमें एक कम प्रावली के असंख्यातवें भाग का अर्थात् प्रावली के असंख्यातवें भाग में से एक कम का भाग देकर, लब्ध को भागहार में मिला देने पर देवगति-सम्बन्धी भागहार होता है। उसे पुन: असंख्यात से भागदेकर और उसी में मिलाने पर सौधर्म-ऐशान स्वर्ग सम्बन्धी भागहार का प्रमाण प्राप्त होता है।। ६३४-६३५।। सौधर्म-ऐशान स्वर्ग के असंयत गुरास्थान सम्बन्धी भागहार को असंख्याता से मुणा करने पर मिश्र गुणस्थान का भागहार होता है। मित्र गुणस्थान सम्बन्धी भागहार को संख्यात से गुणा करने पर सासादनगुणस्थान का भागहार होता है। अथवा सौधर्म-ऐशान के सासादन सम्बन्धी अवहारकाल को असंख्यात से गुणा करने पर सानत्कुमार माहेन्द्र स्वर्ग के देवों के असंयत सम्यग्दृष्टि का अवहार काल प्राप्त होता है। उसको असंख्यात से गुणा करने पर मिश्र गुणस्थान का अवहारकाल होता है। इसको संख्यात से गुणा करने पर सासादन का अबहारकाल होता है ।। ६३६।। यह क्रम सौधर्म स्वर्ग से लंकर सहस्रार स्वर्ग पर्यन्त. ज्योतिषी, व्यन्नर, भवनवासी, तिर्यच, सातों नरक पृथिवियों में अविरत के अवहार काल से मिश्रगुणस्थान का अवहार काल असंख्यात गुणा होता है। इसको संख्यात से गुणा करने पर सासादन गुणस्थान का अवहारकाल होता है। इसको असंख्यात से गुणा करने पर देशसंयत गुणस्थान का अवहार काल अर्थात गुणाकार होता है ।। ६३७।। चरम अर्थात् सप्तम पृथ्वी के सासादन भागहार से पामत-प्रारगत स्वर्ग के असंयत का भागहार असंख्यात गुणा है। इसके आगे पारण अच्युत का और मारण-अच्युत से लेकर अन्तिम-वेयक पर्यन्त असंयत सम्यग्दृष्टि का भागहार संख्यात गुगणा है ।।६३८।। अन्तिम-ग्रेवेयक के असंयत सम्यग्दृष्टियों के भागहार को संख्यात से गुणित करने पर पानतप्राणत स्वर्ग के मिथ्याष्टियों का भागहार होता है। पुनः इसे उत्तरोत्तर संख्यात गुणा करते जाने पर आगे के स्वर्गों के मिश्याष्टियों का भागहार प्राप्त होता है। यह क्रम अन्तिम अवेयक पर्यन्त ले जाना चाहिए। अन्तिम ग्रैवेयक के मिथ्याष्टि सम्बन्धी भागहार को संख्यात से गुणा करने पर नव अनुदिश के असंयत सभ्यग्दृष्टियों का भागहार होता है । नव अनुदिश के भागहार को संख्यात से गुणा करने पर विजय-वैजयन्त-जयन्त और अपराजित विमानों के असंयत सम्यग्दृष्टि का भागहार होता है। विजयादिक सम्बन्धी संयत के भागहार को असंख्यात से गुणा करने पर आनत-प्राणत स्वर्ग सम्बन्धी सम्यग्मिश्यादृष्टियों का भागहार होता है ।।६३६॥ इस मिथ भागहार से पारण-अच्युत प्रादि नवम ग्रंवेयक पर्यन्त दस स्थानों में मिथ सम्बन्धी भागहार का प्रमाण क्रम से संख्यातगुणा संख्यातगुणा है । यहाँ पर संख्यात की सहनानी आठ का अंक है । अन्तिम ग्रेवेयक के मिश्र सम्बन्धी भागहार से प्रानतप्राणत से लेकर नवम वेयक पर्यन्त ग्या
ग्यारह स्थानों में सासादम मम्यग्दृष्टि के भागहार का प्रमाण क्रम से संन्यात-संख्यात गुणा है। इन पूर्वोक्त पांच स्थानों में संख्यात की सहनानी क्रम से ५. ६, ७, ८ और ४ है ।। ६४०। अपने-अपने भागहार से पल्योपम को भाजित करने पर अपनी-अपनी राशि का प्रमारण प्राप्त होता है। अपनी-अपनी सामान्य राशि में गुगास्थान प्रतिपन्न जीवराशि घटाने पर मिथ्याष्टि जीवराशि प्राप्त होती है ।। ६४१॥
विशेषार्थ गा. ६३४-६४१- एक कम अधस्तन विरलन का (एक कम पावली के असंख्यातवें भाग का) ऊपर विरलित प्रोघ असंयत सम्यग्दृष्टि के यवहारकाल (भागहार) में भाग देने पर