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________________ RE -COLOESCAKC C ACANADA यदेहपुण) फेर वैक्रिय शरीरका अनुमान कहते है (अंगुलसंखसमारंभे ) औदारिक शरीरवालोंके तथा वेक्रिय शरीरवालोके उत्तर वैक्रिय आरंभतीबेर अंगुलके संख्यातमे भागे होता है ॥८॥ | देवनरअहियलक्खं तिरियाणनवयजोयणसयाई ! दुगुणंतुनारयाणं भणियंवेउवियसरीरं ॥९॥ । (देवनरअहियलखं) देवताका वैक्रियशरीर एक लाखजोजनका होता है और मनुष्यका वैक्रियशरीर एक लाख जोजनसें कुछ अधिक होता है (तिरियाणनवयजोयणसयाई) और तिर्यंचका वैक्रिय शरीर नबसें जोजनका (दुगुणंतुनारयाणं) और नारकयोका शरीर मूलसें दूना होता है (भणियवेउवियसरीरं ) इसप्रकारे वैक्रिय शरीरका प्रमाण कहा ॥ ९ ॥ अंतमुहत्तंनिरये मुहुत्तचत्तारितिरियमणुएसु । देवेसुअद्धमासो उक्कोसविउवणाकालो ॥१०॥ (अंतमुहुर्तनिरये ) नारकयोके उत्तरवैक्रियशरीरका काल अंतर्मुहूर्त्तका होवे है फेर दुसरा करणा पड़ता है ( मुहुसचत्तारितिरियमणुएसु) मनुष्य और तिर्यचके वैक्रिय शरीरका काल मान चार मुहूर्त्तका है (देवेसुअद्धमासो) और टू देवोके उत्तरवैक्रियशरीरका काल एकपक्षदिनका (उक्कोसविउवणाकालो) इस प्रकारसें वैक्रिय शरीरका उत्कृष्टकालमान कहा है ॥ इति शरीर अवगाहना द्वार २॥ १० ॥ थावरसुरनेरइया असंघयणायविगलछेवट्ठा । संघयणछगंगष्भय नरतिरिपसुमुणेयत्वं ॥ ११ ॥
SR No.090175
Book TitleJivvicharadiprakaransangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJindattsuri Gyanbhandar Surat
PublisherJindattsuri Gyanbhandar
Publication Year
Total Pages305
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size7 MB
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