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________________ उचित सामग्री - मनुष्य-जन्म और सम्यक्त्व - सच्ची श्रद्धा भी प्राप्त हुई है इसलिये हे भव्य जीवो ! प्रसाद न करके, महापुरुषोंने जिस धर्मका सेवन किया है उसका तुम भी सेवन करो, क्योंकि बिना धर्मकी सेवा किये तुम जन्म-मरणके जलसे नहीं छूट सकोगे. एसो जीववियारो, संखेवरुईण जाणणाहेउं । संखित्तो उद्धरिओ, रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ ॥ ५१ ॥ ( संखेवरुईण ) सङ्क्षेप रुचियोंके - अल्पमतियोंके ( जाणणा हेउ ) जाननेकेलिये ( रुदाओ ) रुद्र - अतिविस्तृत ( सुयसमुदाओ ) श्रुतसमुद्रसे ( एसो ) यह (जीववियारो) जीवविचार ( संखित्तो ) सङ्क्षेपसे (उद्धरिओ) निकाला गया ॥ ५१॥ भावार्थ - सिद्धान्तों में जीवोंके भेदआदि विस्तारसे कहे गये हैं इसलिये अल्प बुद्धिवाले लाभ नहीं उठा सकते; उनके जाननेकेलिये सङ्क्षेपमें यह "जीवविचार" सिद्धान्तके अनुसार बनाया गया है, इसके बनानेमें अपनी कल्पनाको स्थान नहीं दिया गया. जीवविचारसार्थ समाप्तः ।
SR No.090175
Book TitleJivvicharadiprakaransangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJindattsuri Gyanbhandar Surat
PublisherJindattsuri Gyanbhandar
Publication Year
Total Pages305
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size7 MB
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