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. भावार्थ-प्रत्येक वनस्पतिकायकी दस लाख; साधारण वनस्पतिकायकी चौदह लाख; द्वीन्द्रियकी दो लाखात |श्रीन्द्रियकी दो लाख; चतुरिन्द्रियकी दो लाख और पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्चोंकी चार लाख योनियाँ हैं. चउरो चउरो नारय, सुरेसुमणुआण चउदस हवंति। संपिंडिया य सवे, चुलसी लक्खाउ जोणीण॥४७॥1
(नारय सुरेसु) नारक और देवोंकी (चडरो चउरो) चार चार लाख योनियाँ हैं; (मणुआण) मनुष्योंकी (चउ-15 दस) चौदह लाख (हवंति ) हैं; (सधे ) सब (संपिडिया) इकट्ठी की जाय-मिलाई जायँ तो ( जोणीणं) योनियोंकी सङ्ख्या (चुलसी लक्खाउ) चौरासी लाख होती है ॥ १७ ॥
भावार्थ-नारक जीवोंकी चार लाख, देवोंकी चार लाख और मनुष्योंकी चौदह लाख योनियाँ हैं. योनियोंकी सव संख्या मिलानेपर चौरासी लाख होती है. सिद्धाण नस्थि देहो;न आउ कम्मन पाण जोणीओसाइ-अणंता तेसि,ठिई जिणिंदागमे भणिया॥४८॥
(सिद्धाण ) सिद्ध जीवोंको (देहो ) शरीर (नत्थि) नहीं है, (न आउ कम्म) आयु और कर्म नहीं है, (न पाण। जोणीओ) प्राण और योनि नहीं है, (तेसिं ) उनकी (ठिई) स्थिति ( साइ अणंता ) सादि और अनन्त है। यह बात 5/ (जिणिंदागमे ) जैन सिद्धान्तमें (भणिया) कही गई है ।। ४८॥
भावार्थ सिद्ध जीवोंको शरीर नहीं है इसलिये आयु और कर्म भी नहीं है, आयुके न होनेसे प्राण और योनि
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