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योजनके ऊपर एकसौ दस योजनोंमें ज्योतिष्क देव रहते हैं, अब वैमानिक देवोंके स्थान कहते हैं;-सम्पूर्ण लोक-जिसे त्रिभुवन कहते हैं-उसका आकार पुरुषके समान है, और उसकी लम्बाई चौदह राजू है, नीचेकी सात राजुओंमें सात नरक हैं. नाभिकी जगह-मध्यमें-मनुष्यलोक है. मेरुकी सपाटभूमिसे. सातसा नवे योजनपर ज्योतिष्क देवोंके , | विमान हैं, वहाँसे लगभग एक राजू ऊपर, दक्षिण दिशामें सौधर्म देवलोक और उत्तर दिशामें ईशान देवलोक परस्पर जुड़े हुए हैं। वहाँसे कुछ दूर ऊपर, दक्षिणमें तृतीय देवलोक सनत्कुमार और उत्तरमें चौथा देवलोक माहेन्द्र, एक दूसरेसे लगे हुए हैं। वहाँसे ऊपर पाँचवाँ ब्रह्मलोक, छठा लान्तक, सातवाँ शुक्र, आठवाँ सहस्रार ये चार देवलोक, |कुछ कुछ अन्तरपर क्रमसे एकपर एक ऐसी स्थिति में है। वहाँसे कुछ ऊँचाईपर नववाँ आनत और दसवाँ प्राणत, 5 हा दक्षिण और उत्तरमें, एक दूसरेसे लगे हुए हैं; वहाँसे कुछ ऊँचाईपर, ग्यारहवाँ आरण और बारहवाँ अच्युत, दक्षिण
तथा उत्तर दिशाओंमें, एक दूसरेसे जुड़े हुए हैं. प्रथमके आठ देवलोकोंके आठ इन्द्र हैं अर्थात् हर एक देवलोकका है एक एक इन्द्र है; पर नववें और दसवें देवलोकका एक तथा ग्यारहवें और बारहवें देवलोकका एक, इस प्रकार अन्तिम चार देवलोकोंके दो इन्द्र हैं; प्रथमके आठ मिलानेसे कल्पोपपन्न वैमानिक देवताओंके दस इन्द्र हुए. पुरुषाकार लोकके गलेके स्थानमें नवनैवेयक हैं, वहाँसे कुछ ऊपर पाँच अनुत्तरविमान हैं. लोकरूप पुरुषके ललाटकी जगह सिद्धशिला है, जो स्फटिकके समान निर्मल अर्जुनसोनेकी है, वहाँसे एक योजनपर लोकका अन्त होता है, लोकके, अन्तिमभागमें सिद्ध महाराजका निवास है. अब तीन प्रकारके किल्बिषिक देव तथा नव प्रकारके लोकान्तिक देवोंका निवा
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