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________________ छे तेनो उच्छेद नही अने ग्रहण पण नही एक धर्मनी मुख्यता करवी ते नय कहियें, ते नयना व्यास के विस्तारथी अनेक भेद छे अने समास के० संक्षेपथी वे भेद छे १ द्रव्यार्थिक, २ पार्यायार्थिक, ते रत्नाकरावतारिकाग्रंथथी लखिये छैयें " द्रवति द्रोष्यति अदुद्रवत् तांस्तान् पर्यायानिति द्रव्यं तदेवार्थः सोऽस्ति यस्य विषयत्वेन स द्रव्यार्थिकः." जे वर्त्तमान पर्यायने द्रवे छे अने आगामिककालें द्रवसे तथा अतीतकालें द्रवतो हतो ते द्रव्य कहिये तेज छे अर्थ ते भुव अने प्रयोजन विषयपणे जेने ते द्रव्यार्थिक कहिये. एटले पर्याय ते जन्य अने द्रव्य ते जनक को तथा द्रव्य पर्याय ते उत्पाद विनाशरूप छे उक्त च. "पर्येति उत्पादविनाशौ प्राप्नोतीति पर्यायः स एवार्थः सोऽस्ति यस्यासौ पर्यायार्थिकः " जे उपजवा विणशवानो परि के० नवा नवापणे एति के पामे तेज अर्थ प्रयोजन तेने पर्यायार्थिक कहियें. ते द्रव्यार्थिक पर्यायार्थिक ए वे धर्मने द्रव्य तथा पर्याय कहियें. इहां कोइक पुछे जे बीजो गुणार्थिक केम कहेता नथी ? ते वली रत्नाकरावतारिका मध्ये को छे " गुणस्य पर्याये एवान्तर्भूतत्वात् तेन पर्यायार्थिकेनेत्र तत् सङ्ग्रहात्." जे गुण ते पर्यायने विषे अंतर्भूत छे ते पर्याचार्थिक मध्येज संग्रह्यो छे. ते पर्याय वे भेदे छे एक सहभावि बीजो क्रम भावि. तेमां सहभावि ते गुण छे ते पर्यायने विषे अंतर्भूत छे, तिहां द्रव्य पर्यायथी व्यतिरिक्त सामान्य विशेष ए वे धर्म छे माटे सामान्य विशेष बे नयवत्ता केम कहेता नथी ? एम कोइ पुछे तेने उत्तर.
SR No.090175
Book TitleJivvicharadiprakaransangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJindattsuri Gyanbhandar Surat
PublisherJindattsuri Gyanbhandar
Publication Year
Total Pages305
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size7 MB
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