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________________ | अर्थ हवे नयज्ञान करवानो अधिकार कहे है, तिहां द्रव्यास्तिकनयना मूल बे भेद छे. १ शुद्ध द्रव्यास्तिक, २ . अशुद्ध द्रव्यास्तिक, अने देवसेनकृत पद्धतिमां द्रव्यास्तिकना दश भेद कर्या छे ते सर्व ए बे भेद मध्ये समाय छ, तथा || ते सामान्य स्वभावमां समाणा छे ते माटे इहां न चखाण्या. । हवे पर्यायना छ भेद कहे छ तिहां प्रथम १ जे द्रव्य विप एकत्वपणे रह्या जे जीवादिकना असंख्याता प्रदेश तथा आकाशना अनंता प्रदेश ए द्रव्य पर्याय कहिये, २ सिद्धत्वादिक अखंडत्वादिक तथा द्रव्यनो व्यंजक के० प्रगटपणो जे ||माने छे ते द्रव्य व्यंजन पर्याय कहिये. | द्रव्यनो विशेष गुण जे अन्य द्रव्यमा नथी तेने विशेष गुण कहिये. ते जीवने चेतनादिक अने धर्मास्तिकायमां चलणसहकार तथा अधर्मास्तिकायमा स्थिरसहकार, आकाशमा अवगाहदान, पुद्गलमां पूरणगलणरूप ए सर्व द्रव्यनी भिन्न-10 तांने प्रगट करे छे ते माटे ए धर्मने द्रव्य व्यंजन पर्याय कहिये.. ३ एक गुणना अविभाग अनंता छे तेनो पिंडपणो ते गुणपर्याय कह्येि ४ गुणव्यंजन पर्याय ते ज्ञाननो जाणंगपणो । | तथा चारित्रनो स्थिरतापणो इत्यादिक अथवा ज्ञानगुणना भेदांतर ज्ञानना भेद जे भतिज्ञानादिक पांच तथा दर्शनगुणना चक्षुदर्शनादिक भेद तथा चारित्र गुणना क्षमादिक भेद, पुद्गलनो रूपी गुण तेना भेद वर्ण, गंध, रस, स्पर्श, संस्थानादिक, अरूपी गुणना अवन्ने, अगंधे, अरसे, अफासे, इत्यादिक चार चार जाणवा ते गुण व्यंजन पर्याय, ५ स्वभाव पर्याय ते वस्तुनो कोइक स्वभावज एवो हे ते अगुरुलघुपणे छे. छ प्रकारनी वृद्धि तथा छ प्रकारनी हानि एवी रीते, AKSHARDHA
SR No.090175
Book TitleJivvicharadiprakaransangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJindattsuri Gyanbhandar Surat
PublisherJindattsuri Gyanbhandar
Publication Year
Total Pages305
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size7 MB
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