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सर्वगुण निरावरण छे पण कार्य करी शकता नथी. जेम अग्निनु अत्यंत सूक्ष्म कणीयु होय तेमा दाहक पाचक प्रकाशक | गुण छे पण अल्पता माटे दाहकादिकार्य करी शकतुं नधी. | वली कोह पुछे जे ए आ अष्ट प्रदेश ते निरावरण केम रही शक्या ? तेनुं उत्तर जे चलप्रदेश होय तेने कर्म लागे
पण अचलप्रदेशने कर्म लागे नही. एम भगवतीसूत्रे कयुं छे. जे एअइ, बेअइ, चलइ, फंदइ, घट्टइ, से बंधइ, ए पाठ छ| ४ ते माटे जे चल होय ते बंधाय अने आठ प्रदेश तो अचल छे. तेथी ए आठ प्रदेशने वंध नथी, तथा कार्याभ्यासे
प्रदेश भेला थाय तेथी प्रदेशना गुण पण तिहां ते कार्य करवाने प्रवत्त छे तथा जे द्रव्यनो जे गुण जे प्रदेशे होय ते, गुण ते प्रदेश मूकी अन्य क्षेत्रे जाय नहीं तथा जीवना आठ प्रदेश सर्वथा निरावरण छे. वीजा प्रदेशे अक्षरनो अनंतमो भाग चेतना सर्वदा उघाडी छे. ए रीतें संति के. छे. घणा अनादि परिणामिकभाव ते भवंति के० होय. अनादि परिणामिकभाव छे ते जीवना भाव छे अने सप्रदेशादिक धर्मास्तिकाय प्रमुखने विषे समान छे एम जाणवो. इत्यादिक । विशेष स्वभाव छे. | भिन्नभिन्नपर्यायप्रवर्तनखकार्यकरणसहकारभूताः पर्यायानुगतपरिणामविशेषखभावाः ते च के,
१ परिणामिकता, २ कर्तृता, ३ ज्ञायकता, ४ ग्राहकता, ५ भोक्तृता, ६ रक्षणता, ७ व्याप्याव्यापकता, ८ आधाराधेयता, ९ जन्यजनकता, १० अगुरुलघुता; ११ विभूतकारणता, १२ का