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________________ Kएम धर्मास्तिकायादिकना सर्वे गुण ते त्रण परिणतिय परिणामी छे, ते माटे पंचास्तिकाय ते अर्थक्रिया करे छे, ते क्रि यावंतपणो जाणवो. सर्वपर्यायनो उपयोगीपणो ए पण जीवस्वभाव छे तथा प्रदेशाष्टकनी निश्चलता ए पण जीवनो। स्वभाव छे. तिहां धर्माधर्म अने आकाश ए त्रण अस्तिकायना प्रदेश अनादि अनंतकाल अवस्थितपणे छे. पुद्गलने चलणपणो सदा सर्वदा छे. पुलपरमाणु तथा पुद्गलस्कंध ते संख्यातो काल' अथवा असंख्यातो काल एकक्षेत्रे रहे पण पछे अवश्य चल थाय. तथा जीवद्रव्यने सकर्मा संसारीपणे क्षेत्रथी क्षेत्रांतर गमन भवथी भवांतर गमनरूप चलता छे, ते जीवने सम्यक्दर्शन सम्यक्ज्ञान अने सम्यक्चारित्रने प्रगटवे सर्व परभाषभोगीपणो निवारवे आत्मस्वरूप निरधारण, स्वरूप भासन स्वरूप परिणमने करघे, स्वरूप एकत्य, स्वधर्मकर्ता स्वधर्मभोक्तापणे, सकलपरभाव तजवे, निराकरण, | निःसंग, निरामय, निद्वंद्व, निष्कलंक, निर्मल, स्वीय अनंतज्ञान, अनंतदर्शन, अनंतचारित्र, अरूपी, अव्यावाच, परमानं४ दमयी, सिद्धात्मा, सिद्धक्षेत्र रह्या ते सादिअनंतकाल स्थिर छे. सकलप्रदेश स्थिर छे, अने संसारी जीव तेना आठ प्रदेश सदा सर्वदा स्थिर छे. ते आठप्रदेश निराबरणे तथा आचारांगनी टीका शैलंगाचार्यकृत तेना लोकविजयाध्ययनने प्रथमोद्देशके तदनेन पंचदशविधेनापि योगेनात्मा अष्टौ प्रदेशान् विहाय तप्तभाजनोदकवदुदर्नमानैः सर्वरैवात्मप्रदेश रात्मप्रदेशावष्टब्धाकाशस्थं कार्मणशरीरयोग्यं कर्मदलिकं यद् बध्नाति तत् प्रयोगकर्मेत्युच्यते. । एटले आठ प्रदेशे कर्म लागता नथी. इहां कोई पुछे जे आठ प्रदेश निरावरण छ तो लोकालोक केम जाणता नथी? तिहां उत्तर जे आत्म द्रव्यनी जे गुणप्रवृत्ति ते सर्वप्रदेशमिले प्रवचे तो तेमां ए आठ प्रदेश अल्प के तेथी आठ प्रदेशमा %2 2 %*
SR No.090175
Book TitleJivvicharadiprakaransangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJindattsuri Gyanbhandar Surat
PublisherJindattsuri Gyanbhandar
Publication Year
Total Pages305
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size7 MB
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