SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 217
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 1 HR : दर्शनोपयोग ते व्यक्त पडतो नथी ते माटे प्रमाण मध्ये गधेष्यो नी. ते प्रमाणना मूल बे भेद छ एक प्रत्यक्ष अने बीजो, परोक्ष. स्पष्टं प्रत्यक्षं परोक्षमन्यत् इति स्याद्वादरलाकरवाक्यात्. | ५ उत्पाद के० उपजयो व्यय के० विणसवो ध्रुव के. नित्यपणो वस्तुना एक गुणमा एक समये ए त्रणे परिणमने | सदा परिणमे छे एवो जे परिणाम ते सत्पणो कहिये अने ते सत्पणानो भाव ते सत्वपणो कहिये. । ६ तथा हो । अनंतभान हानि, २ असंख्यात भाग हानि, ३ संख्यात भाग हानि, ४ संख्यात गुण हानि, ५ असंख्यात गुण हानि, ६ अनंत गुण हानि, ए छ प्रकारनी हानि, तथा १ अनंत भाग वृद्धि, २ असंख्यात भाग वृद्धि, ३ संख्यात भाग वृद्धि, ४ संख्यात गुण वृद्धि, ५ असंख्यात गुण वृद्धि, ६ अनंत गुण वृद्धि. ए छ वृद्धि. एम छ प्रका-11 रनी हानि तथा छ प्रकारनी वृद्धि ते अगुरुलघु पर्यायनी सर्व द्रव्यने सर्व प्रदेशे परिणमे छे ते कोइक प्रदेशे कोइ समये, अनंतभाग हानिपणे परिणमे छे अने कोइक समये कोइक प्रदेशे अनंतभाग वृद्धिपणे परिणमे छे. एवं बार प्रकारे परिमाणमे छे ते अगुरुलघु पयायनी परिणमन शक्ति ते अगुरुलघुत्वं. अगुरुलघुनो भाव जाणवो. तत्त्वार्थ टीकाने विष पांचमा, अध्यायें अलोकाकाशने अधिकारें कह्यो छे. एम ए छ स्वभाव सर्व द्रव्यने विषे परिणमे छे. ए छए द्रव्यनो भूलक (६ भाव छे. द्रव्यनो भिन्नपणो प्रदेशनो भिन्नपणो ते अगुरुलघुने भेदपणे थाय छे ते माटे ए छ मूल सामान्य स्वभाव हे. ए द्रव्यास्तिक धर्म छे अने एनुं परिणमन ते पर्यायास्तिक धर्म छे. केटलाक वादी एम कहे छ जे पर्यायनो पिंड ते द्रव्य
SR No.090175
Book TitleJivvicharadiprakaransangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJindattsuri Gyanbhandar Surat
PublisherJindattsuri Gyanbhandar
Publication Year
Total Pages305
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy