SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 206
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ केमके अरूपीथी रूपी कार्य थाय नही ते माटेज परमाणु रूपी छे. तथा ए स्कंध पण रूपी थया छे अने आकाश प्रदेश |अरूपी छे तो तेनो अनंत प्रदेशी स्कंध पण अरूपी छे एम धार ते परमाणुना व्यणुकादिक स्कंध अनंता छे, तथा छुटा परमाणु ते पण अनंता छे ते वली खंधमां मिले छे तो बीजा खंधमांहेथी छुटा थाय छे एम खंध विखरी जाय ने परमाणु धाय वेनी वर्गणा अठ्यावीस प्रकारनी छे. ते अठ्यावीस भेद कम्मपयडीथी जाणवा. एम एकला परमाणु ते । पण अनंता तथा वे मिलीने खंध पाम्या तेवा खंध पण अनंता एमज संख्याताणुकना खंध पण अनंता तेमज असंख्यात परमाणु मिलि खंध थाय ते पण अनंता तथा अनंत परमाणु मल्या खंध थाय तेवा खंध पण अनंता ते ए जातिना खंध ते एक आकाश प्रदेश अवगाहे. आकाशांश अवगाहे एम असंख्याता प्रदेश अवगाहे के पण एक वर्गणानी अवगाहना | अंगुलने असंख्यातमें भागे अवगाहे वधति अवगाहे नही अने अनंति वर्गणा मिले अंगुल हाथ गाउ योजनादिकने माने अवगाहना थाय एम ए १ धर्मास्तिकाय २ अधर्मास्तिकाय ३ आकाशास्तिकाय ४ पुगलस्तिकाय ए चारे द्रव्य अचेतन छे अजीव छे जाणपणा रहित छे. चेतनालक्षणो जीवः, चेतना च ज्ञानदर्शनोपयोगी अनन्तपर्यायपरिणामिककर्तृत्वभोक्तृत्वादिलक्षणो जीवास्तिकायः। अर्थ-हवे जीव द्रव्यनुं स्वरूप कहे छे चेतना जे बोधशक्ति के लक्षण जेतुं ते जीव कहिये. जे पोताना परिणमन
SR No.090175
Book TitleJivvicharadiprakaransangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJindattsuri Gyanbhandar Surat
PublisherJindattsuri Gyanbhandar
Publication Year
Total Pages305
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy