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________________ " हे विनय तथा वेयावच्च ते तपना भेद छे तप ते मोक्ष मार्ग मध्ये श्रीउत्तराध्ययने २८ मे अध्ययने को ते तुमे हिंसा में केम कहोछो तथा विवहार सूत्रे सिद्ध वेयावच्चेणं महानिज्जरा महापज्जवसाणं भवति ते माटे सिद्ध वैयावच्च ते पूजा छे तथा कोइ पूछे जेश्रावके प्रतिमा किहां पुजी छे तेहने कहेवो जे श्रीभगवती सूत्रे तुंगीयानगरीने श्रावके पूजा करी छे शंख पुष्कली ये पूजा करी छे तथा समयांग सूचे दशांगी दीदिशानी हुंडीमध्ये दश श्रावकनां चैत्य एहवो पाठ हे चैत्य तो साधु धाय नही ज्ञान थाय नहीं ते सर्वना पाठ जुदा के तथा नंदी सूत्रे यिण पाठ छे तथा नंदी मध्ये जे आगम कह्या ते सर्व माने तेज समकिति जाणवो श्रीअनुयोगद्वार सूत्रे निर्यु क्तिनी हा कही छे ते नियुक्तिमध्ये पूजाना अनेक अधिकार के तथा तंदुलवेयालीय पयन्नानी टीकामध्ये समवसरणना फूल सचित ते ऊपर साधु साध्वी चाले प्रवचनसारोद्धारनी टीकाये पण ए संमत छे तथा कोइ कहस्ये जे फूलने प्रो परोववा नहीं तेहने कहीये जे हीर प्रश्नमध्ये पाठ छे तथा वन्नगंधोवर्हेचेति श्लोक व्याख्यायते श्राद्धदिन कृत्ये प्रोत पूजाक्षराणी वर्त्तते तथा आद्य पक्षेतु श्रीजिनवल्लभ सूरि कृत पूजा कुलकेऽपि प्रोत पुष्पाक्षराणि संति तथा हरिभद्र सूरि कृत पूजा पंचास के जहरेंहई तह कीरइ ए गाथाना आसयथी पिण प्रोया फूलनी हा जणाय छे तथा उमास्वाति वाचक कृत पूजा पंढलमां पिण एमज जणाय छे.
SR No.090175
Book TitleJivvicharadiprakaransangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJindattsuri Gyanbhandar Surat
PublisherJindattsuri Gyanbhandar
Publication Year
Total Pages305
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size7 MB
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