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SIRSAGAR
रीने आभरण अलंकार पहेस्या पछी घरथी निकल्या एरीते सिद्धार्थ राजा तथा रिखभदत्त सुदरशनशेठ इम सुभद्दपुत्र । ollश्रावक संख पुष्कली श्रावक कार्तिक शेठ बांदवा गया छे तेबारे कयवलिकम्मा तथा पछी घरे आवी साहमीवछल करीने दीक्षा लेवा निकल्या तेवारे न्हाया कयवलीकम्मा ए पाठ के इत्यादिक श्रावक अन्य देवनी पूजा न करे। गोत्रज न पूजे अरिहंत देवनेज पूजे तथा कोइ कहस्ये कयबलिकम्मा पाठ कठीयारा प्रमुख अनेक थानके छ तेमा
स्याना छे पोते जेहने देवबुद्धि माने ते तेहने पुजे तथा देवदत्त बालके कीमि पुजा करी हशे ते तो वालकने मावीत्रे, ४ पुजा करावी तो कां न करे आज पण पालक पूजा करतादी छे तो कयलिकम्मा ए पाठनो बीजो अर्थ शाने
करो छो तथा दीक्षा महोच्छव घणा दीसे छे पण तिहां देहरा प्रतिमानो पाठ नी तेहनो उत्तर जे दीक्षाने उतावला थया तेवा साधुने वहोराववा रह्या नथी तो देहरा करावया तो घरे स्याने रहे अने पहेलां देहरां प्रतिमा छे ते तो नंदीसूत्रे आगमनो धनो पाठ जोस्यो तो सर्व समो पडसे तथा तुम्हे पुच्छु जे तीर्थकर ग्रहस्थपणे छतां साधु साध्वी श्रावक श्राविकाए वांद्या नथी तेनो उत्तर घणाए वांद्या छे ते पाठ ज्ञाता सूत्रमा छे तथा तुमे लख्यो जे प्रतिमा एकेन्द्रि दल छ तेहवा बचन संसारनो जेहने भय न हुवे ते बोले जे कारणे श्रीभगवते तो जिणपडिमा कही बोलावी छ। देहराने सिद्धायतन कही बोलाव्यो तो तुमे कठोर बचन स्याने बोलो छो तथा तुमे दिशी वंदना करो छो ते दीसी तो अजीवछे तो किम वांदो छो तिहां तुम्हे कहेस्यो जे अम्हारा मनमें तो सिद्ध छे तो जिनपडिमा वांदतां पिण अमारा मनमा सिद्ध छे तथा सूत्रमध्ये गुरुना पाटनी आशातना टालवी कही छे ते पाठ अजीव छे ते पीण सर्व गुरुनो बहु