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________________ * -1 सहित पोतानी सत्ताने ध्यावे ते पृथक्त्वधितर्कसप्रविचार पेहेलो पायो ए आठमा गुण प्रणाथी मांडी इग्यारमा गुण-14 ठाणा सुधी छे. | २ एकत्ववितर्कअप्रविचार नामा बीजो पायो कहे छे. जे जीव आपणा गुण पर्यायनी एकताकरी ध्याचे ते आधी रीते के जीवना गुण पर्याय अने जीयते एकज छ भने महारो जीव सिद्धस्वरूप एकज छे एवो एकत्व स्वरूप तन्मय पणे अनंता आस्म धर्मनो एकत्वपणे ध्यान वितर्क केहतां श्रुतज्ञानावलंबी पणे अने अप्रविचार केहतां विकल्प रहित दर्शन ज्ञाननो समयांतरें कारणता विना रत्नत्रयीनो एक समयी कारण कार्यता पणे जे ध्यान वीर्य उपयोगनी एकाग्रता ते एकत्ववितर्क अप्रविचार जाणवो. ए पायो वारमा गुणठाणे ध्यावे ए बेहु पायामां श्रुतज्ञानावलंबनी पणो छ । पण अवधि मनपर्यव ज्ञानोपयोगें वसतो जीव कोइ ध्यान करी सके नहीं ए वे ज्ञान परानुयायी छे माटे. ए ध्यानी घनघातिया चार कर्म खपावे निर्मल केवल ज्ञान पामें पछे तेरमें गुणठाणे ध्यानतरिका पणे छे तेरमाना अंते अने चउ-18 दमे गुणठाणे ए में पाया ध्यावें. 1 ३ सूक्ष्मक्रिया अप्रतिराति पायो कहे छे. ते सूक्ष्म मन वचन कायाना योग कंघे शैलेशी करण करी अयोगी थाय ४ ते जे अप्रतिपाति निर्मलवीर्य अचलतारूपपरिणाम ते सूक्ष्मक्रियाअप्रतिपाति ध्यान जाणवू इहां सत्ताये ८५ प्रकृति रही है हती तेमध्ये ७२ खपाधे. ४ उछिन्नक्रियानुवृत्ति पायो कहे छे. जे योग निरुंध कीधापछे तेर प्रकृति खपावे अकर्मा थाय सर्व क्रियाथी रहित * * *
SR No.090175
Book TitleJivvicharadiprakaransangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJindattsuri Gyanbhandar Surat
PublisherJindattsuri Gyanbhandar
Publication Year
Total Pages305
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size7 MB
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