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________________ हूँ। ४ संस्थानविषयधर्मध्यान कहे छे ते चउदराजमान लोकनुं स्वरूप विचारे जे ए लोक ते चउदराज ऊंचो छे ते मध्ये काइक अधिक सात राज अधो लोक छे विचमा अढारसो योजन मनुष्य क्षेत्र त्रिछो लोक छे ते ऊपर कांइक ऊणो सात राज ऊर्ध्व लोक छे तेमां सर्व वैमानिक देवता बसे छे अने ऊपरें सिद्ध शिला सिद्धक्षेत्र छ ए रीते लोकनुं प्रमाण छे ए लोकनुं संस्थान वैशाख छे अनंतो काल आपणा जीवें संसारमा भमतां सर्व लोकने जन्ममरण करी फरस्यो छे। एवं जे लोक स्वरूप तथा लोकने विषे पंचास्तिकाय अवस्थान तथा परिणमन द्रव्यमध्ये गुण पर्यायन अवस्थान तेनो ४ जे एकग्रताये तन्मयचिंतवण परिणाम पहबु जे ध्यान ते संस्थानविचयधर्मध्यान कहिये ए धर्मध्यानना चार पाया कह्या. ए धर्मध्यान चोथा गुणठाणाथी मांडी सासमा मुपागः सुभी . | हवे शुक्लध्यान कहे छे. शुक्लकेहतां निर्मलशुद्ध परआलंबन विना आत्माना स्वरूपने तन्मय पणे ध्यावे एहवं ध्यान तेने शुक्लध्यान कहिये तेहना पाया घार छे ते कहे छे. १ पृथक्त्ववितर्कसप्रविचार ते पृथक्त्व केहतां जीवथी अजीव जूदा करवा स्वभाव विभाव तेने जूदा पृथपणे बहें-15 चण करवी स्वरूपने विषे पण द्रव्य तथा पर्यायनो पृथकपणे ध्यान करी पर्याय ते गुणमां संक्रमावे अने गुण ते पर्यायमा संक्रमण करे एरीते स्वधर्मने विषे धर्मातर भेद ते पृथक्त्व कहिये अने तेनो वितर्क ते जे श्रुतज्ञाने स्थित उपयोग अने समविचार ते सविकल्पोपयोग एटले एक चिंतव्या पछि बीजो चिंतवको तेने विचार कहिये एटले निर्मल विकल्प
SR No.090175
Book TitleJivvicharadiprakaransangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJindattsuri Gyanbhandar Surat
PublisherJindattsuri Gyanbhandar
Publication Year
Total Pages305
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size7 MB
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