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________________ पामे के जुओ में केवोकपटकेलव्यो मारा जूटापणानी खबर कोइने पडी नही एवो मृषावाद रूप परिणाम ते मृषानुबंधी रौद्रध्यान ३ चोरी करी अथवा ठगाइ करी मनभां खुशी याय के मारा जेवी जोरावर कोण छे हुं पारको माल खाउं छं एवो परिणाम ते चोरानुबंधि रौद्रध्यान ४ परिग्रह धन धान्य परिवार घणो वधवानी लालच होय ते धन अथवा कुटुंबने माटे गमे तेनुं पाप करे अथवा घणो परिग्रह मिल्याथी अहंकार करे ते परिग्रह रक्षणानुबंधी रौद्रध्यान ए रौद्रध्यानना चारभेद कह्या ए ध्यान नरकगति पमावानुं कारण हे महाअशुभकर्मबंधनुं कारण छे ए पांचमा गुणठाणा सुधी छे अने छड्डे गुणठाणे पण एक हिंसा नुबंधी रौद्रध्यानना परिणाम कोइक जीवने होय. हवे धर्म ध्यान कहे छे. जे व्यवहार क्रियारूप कारण ते धर्म तथा श्रुतज्ञान अने चारित्र ए उपादानपणे साधन धर्म तथा रलत्रयी भेदपणे ते उपादान शुद्ध व्यवहार उत्सर्गाऽनुयायी ते अपवाद धर्म जाणवो अने अभेदरलत्रयी ते साधन शुद्ध निवें नये उत्सर्ग धर्म अने ( धम्मो वत्थु सहावी) जे वस्तुनो सत्तागम शुद्ध परिणामिक स्वगुण प्रवृत्ति कर्त्रादिक अनंतानंद रूप सिद्धावस्थायें रह्यो ते एवंभूत उत्सर्ग उपादान शुद्ध धर्म ते धर्मनुं भासन रमण एकाग्रतापणे चिंतन तन्मयतानो उपयोग एकत्वनो चिंतनवो ते धर्म ध्यान कहियें तेना पाया घार छे ते कहे हे. १ आज्ञाविचयधर्मध्यान से जे वीतराग देवनी आज्ञा साधी करी सर्दहे एटले भगवंते छ द्रव्यनुं स्वरूप नय प्रमाण निक्षेपा सहित सिद्ध स्वरूप निगोद स्वरूप जेम का तेम सईहे वीतरागनी आज्ञा नित्य अनित्य स्याद्वाद पणे निश्
SR No.090175
Book TitleJivvicharadiprakaransangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJindattsuri Gyanbhandar Surat
PublisherJindattsuri Gyanbhandar
Publication Year
Total Pages305
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size7 MB
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