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.४ मैथुन विरमण व्रत कहे छे. जे पुरुष परस्त्रीनो परिहार करे तथा जे स्त्री परपुरुपनो परिहार करे इहां साधुने स्त्रीनो सर्वथा त्याग छे अने गृहस्थने परणेली स्त्री मोकली छे परस्त्रीनो पञ्चखाण छे ते व्यवहारथी मैथुन- विरमण कहियें अने जे विषयना अभिलापर्नु तथा ममता तृष्णानो त्याग परभाव वर्णादिक परद्रव्यना स्वामित्वादिक तेनो अभोगी पणो आत्मा स्वगुण ज्ञानादिकनो भोगी छे अने ए पुद्गलखंध ते अनंता जीवनी एउछे तेने केम भोगवे ए रीते त्याग ते निश्चयी मैथुन विरमण कहिये जेणे बाह्य विषय छांड्यो छे अने अंतरंग लालच छूटी नथी तो तेहने ते मैधुनना कर्म लागे छे.
५ परिग्रह परिमाणवत कहे छे. परिग्रह धन-धान्य-दासदासी चौपद-जमीन-वस्त्र-आभरणनो त्याग तेमां साधुने ? 15 तो सर्वथा परिग्रहनो त्याग छे तथा श्रावकने इच्छा परिमाण छे जेटली इच्छा होय तेटलो परिग्रह मोकलो राखे बीजानी 5 टूबती करे ए व्यवहारथी कह्यो अने जे कर्म रागद्वेष अज्ञानद्रव्य ज्ञानावरणी प्रमुख आठ कर्म अने शरीर इन्द्रियनो || IN परिहार एटले कर्मने परिग्रह जाणी छोडवो ते निश्चेथी परिग्रहनो त्याग एटले परवस्तुनी मूछो छांडवी जेणे मूर्छा छोडि
तेणे परिग्रह छोड्योज छे एम जाणवू.
६ दिशिपरिमाण व्रत कहे छे. तिहां तिरछि चार दिशी पांचमी अधो छट्ठी ऊर्च ए छदिशीना क्षेत्रनो मान करी मोकलो राखे ते व्यवहारथी दिशी परिमाण कहिये अने चार गतिमा भटकवू ते कर्मर्नु फल छ एम जाणी तेथी उदा18 सीनपणो अने सिद्ध अवस्थाई उपादेय पणो ते निश्चेदिशिपरिमाण ब्रत कहिये.
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