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NAGAR
LAHAN
[क्रिया अनुष्ठान करे सूजतो आहारलीये पण ज्ञानध्याननो जेवो उपयोग जोइये तेवो उपयोग न होय ते द्रव्यसाधु जे
भाव संवरमोक्षनो साधक थइ भाव साधुनी करणी करे ते भान लिओपे साधु कहिये। PI कोइकनो अरिहंत नाम छे ते नाम अरिहंत अने अरिहंतनी प्रतिमा ते थापना अरिहंत जेटलासुधी छद्मस्थ अवस्था । 18|| ते द्रव्य अरिहंत अने केवलज्ञान पाम्या पछे लोकालोकनो भाव जाणे देखे ते भाव अरिहंत एम सिद्धमां पण कहेवो.
कोइ जीवनो ज्ञान एहवो नाम अथवा भावें अजीवनो नाम ते नामज्ञान तथा जे ज्ञान पुस्तकमां लख्यु छे ते स्थाप: है नाज्ञान जे उपयोग विना सिद्धांतनो भणयो अथवा अन्यमतिना सर्वशास्त्र भणवा तथा ज्ञशरीरादिक ते सर्व द्रव्यज्ञान
जे नवतत्वनुं जाणवू ते भावज्ञान. | तथा कोइकर्नु तप एहद नाम ते नामतप तथा पुस्तकमां तपनी विधीनें लखन ते थापनातप अने पुण्यरूप मास-] खमणादिक करवो ते द्रव्यतप जे परवस्तु ऊपर त्यागनो परिणाम ते भावतप एम संवरादिक सर्वमां चार चार
पा जाणवा तथा श्रीअनुयोगद्वार मध्ये की छे-यतः "जत्थय जंजाणिज्जा निक्खेवं निख्खिवे निरवसेसं ॥ जत्थ|| विय न जाणेजा चउक्वगं निक्खिये तत्थ ॥ १॥ए चार निक्षेपा कह्या एटले शब्द' नय कह्यो. | हवे छटो समभिरूढ नय कहे छे जे वस्तुना केटलाक गुण प्रगट्या छे अने केटलाक गुण प्रगल्या नथी पण अवश्य प्रगटशे एहवी वस्तुने वस्तु कहे ते वस्तुना नामांतर एक करी जाणे जेम जीव चेतन तथा आत्मा एहनो एक अर्थ :