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________________ ID छे द्रव्यमा एक धर्मास्तिकाय, बीजो अधर्मास्तिकाय, त्रीजो आकाशास्तिकाय ए त्रण ते एकेक द्रव्य छे, तथा एक ४ जीवद्रव्य बीजो पुदलद्रव्य त्रीजो कालद्रव्य ए त्रण द्रव्य अनेक अनेक छे, छ द्रव्यमा एक आकाशद्रव्य क्षेत्र छे, अने, बीजा पांच द्रव्य क्षेत्री छे निश्चयनयथी छे द्रव्य पोतपोताना कार्य सदा प्रवर्ने छे माटे सक्रिय छे; अने व्यवहारनयधी सजीव तथा पुद्गल ए वे द्रव्य सक्रिय छे, तेमां पण पुद्गल सदा सक्रिय छे. अने जीवद्रव्य तो संसारी थको सक्रिय छ । पण सिद्धअवस्थायें थको संसारी क्रियाकरवाने अक्रिय छे, तथा वाकीना चार द्रव्य तो अक्रिय छे; निश्चयनयथी छे द्रव्य नित्य छे ध्रुव छ; अने उत्पादव्ययेकरी अनित्यपणे पण छे तथा व्यवहारनये जीव अने पुद्गल ए बे द्रव्य अनित्य छे, बाकीना चार द्रव्य नित्य ठे, यद्यपि उत्पादव्यय भुवपणे सर्व पदार्थ परिणमे छे तोपण एक धर्म, वीजो अधर्म, |त्रीजो आकाश, चोथो काल, ए चार द्रव्य सदा अवस्थित छे ते माटे नित्य कह्यां. छे द्रव्यमा एक जीवद्रव्य अकारण छे अने पांच द्रव्य कारण के केमके पांचे द्रव्य जीवने भोगमा आवे छे माटे कारण कहिये केमके धर्मास्तिकाय चालवानो साह्य आपे छे अधर्मास्तिकाय थिर रहेवानो साह्य आपे छे आकाशास्तिकाय अवकाश आपे छे पुद्गलास्तिकाय जीवने मधुरादि सुरभिगंधादिक तथा सकोमल स्पर्शादिक भोगपणे थाय छे तथा कालद्रव्य ते जीवने जरा वाल तारुण्य अवस्थादिए छे तथा अनादि संसारी जीव भवस्थिति परिपाक छता एक अंतर मुहूर्तकालमां सकलकर्म निर्जरी मोक्ष पहोंचे तिहां सिद्ध अवस्थायें अनंतोकाल पर्यंत जीव अनंता सुखने विलसे मादे काल द्रव्यपण जीवने भोग थाय छे. पण एक जीव द्रव्य कोइने भोग आवतो नथी माटे अकारण कयुं अने| - -
SR No.090175
Book TitleJivvicharadiprakaransangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJindattsuri Gyanbhandar Surat
PublisherJindattsuri Gyanbhandar
Publication Year
Total Pages305
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size7 MB
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